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जीवन से संबंधित प्रश्न

अस्थिर संसार में मानसिक शांति

भविष्य में चाहे जो भी होनेवाला हो, आप निश्चित ही मानसिक शांति और एक आत्मविश्वास पा सकते हैं, जब आप यह जान लेंगे…

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इस संसार, या हमारे व्यक्तिगत जीवन में चाहे जो भी हो रहा हो, क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ हम स्थिरता प्राप्त करने के लिए जा सकते हैं? क्या हम जीवन और दुनिया की परिस्थितियों की परवाह किए बिना, भविष्य की ओर आशा से देख सकते हैं? आज-कल बहुत से लोग परमेश्वर के स्थिर होने के मूल्य को समझ रहे हैं। हमारे चारों ओर संसार निरंतर बदलता रहता है, किन्तु परमेश्वर नहीं बदलता। वह स्थिर, हमेशा एक जैसा, और विश्वसनीय रहता है। वह कहता है, “क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है? नहीं, मुझे छोड़ कोई चट्टान नहीं; मैं किसी और को नहीं जानता॥ क्योंकि मैं, यहोवा, बदलता नहीं।”1 परमेश्वर हमेशा यहाँ है। हम उस पर निर्भर कर सकते हैं। वह, “कल और आज और युगानुयुग एक-सा है।”2 और परमेश्वर अपने आपको प्रगट कर सकता है, ताकि उसके द्वारा हमें मन की शांति प्रदान हो, और हम उस में आराम प्राप्त करें।

क्या मन की शांति संभव है?

हेदर (Heather), अमरीका के स्टैनफॉर्ड कॉलेज की एक स्नातक, ने इसे इस प्रकार बतलाया, “परमेश्वर के साथ एक वास्तविक संबंध [रिश्ता] होना, एक चौंका देनेवाला और सुंदर दैनिक सत्य है। इस ‘ब्रह्माण्डीय साहचर्य’ [परमेश्वर के साथ एक संबंध] को मैं दुनिया की किसी चीज़ के साथ भी नहीं बदलना चाहूँगी। जिस गहराई से मुझे जाना गया और प्रेम किया गया है, मैं आशा करती हूँ कि इसे मैं पर्याप्त रूप से बतला सकूँ।”

स्टीव सौयर, जो हीमोफीलिया (अधिक रक्तस्त्राव) से पीड़ित था, स्थिरता की खोज कर रहा था, जब उसे पता चला कि दूषित रक्त-आधान के कारण उसे एच.आई.वी. (HIV) ऐड्स हो गया था। पहले तो स्टीव बहुत निराश और परेशान था। उसने परमेश्वर को दोषी ठहराया। पर इसके बाद वह परमेश्वर के पास गया। इसका परिणाम - अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में, स्टीव ने (भयंकर दर्द को सहते हुए) अनगिनत कॉलेज कैम्पस की यात्रा की, ताकि वह सहपाठी छात्रों को बता सके कि वे परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं, और उस शांति का अनुभव कर सकते हैं जो उसने परमेश्वर को जानने के बाद में अनुभव करी। परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।”3

स्टीव की तरह, अन्य लोगों ने भी यह जान लिया है कि इस जीवन में चाहे जो कुछ भी हो जाए, यह “दुनिया का अंत” नहीं है -- क्योंकि यह दुनिया अंत नहीं है।

‘फ़ॉक्स्होल’ (गहरी खाई) का परमेश्वर

(*दुश्मन द्वारा आक्रमण से बचने के लिए सैनिक जमीन में एक गड्ढा खोद कर वहाँ से गोली चलाते हैं। इस गोलाबारी करने की खाई को अंग्रेज़ी में ‘फाक्स्होल’ (लोमड़ी की मांद/खाई) कहा जाता है।)

निस्सन्देह, कई लोग तब तक परमेश्वर की ओर मुड़ने के लिए रुकते हैं, जब तक समय पूरी तरह से कठिन न हो जाए। द्वितीय विश्व युद्ध के समय के एक मिलिट्री चैपलेन (मिलिट्री में सेवा करने वाला पादरी) ने बताया कि, “इस ‘फ़ॉक्स्होल’ (खाई) में कोई भी नास्तिक नहीं होता”। जब तक जीवन अच्छा चल रहा होता है, लोगों को नहीं लगता कि उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता है। पर जब गड़बड़ होने लगती हैं, तब उन का मन बदल जाता है। उन्हें एहसास होता है कि वे खाई में हैं।

कैरिन, परमेश्वर की ओर अपनी जीवन यात्रा के बारे में इस तरह बताती हैं: “मैंने सोचा कि मैं ईसाई (मसीही) थी क्योंकि मैं हर रविवार चर्च (गिरजाघर) जाती थी, पर मुझे यह नहीं पता था कि परमेश्वर कौन हैं। हाई स्कूल में मैं अधिकांश समय शराब पीने में, नशीली दवाओं के सेवन में, या इस खोज में व्यतीत करती थी कि किसी तरह कोई मुझ से प्रेम करने वाला मिले। मैं अंदर ही अंदर मर रही थी और अपने जीवन पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था। जब मुझे एहसास हुआ कि मैं चाहती थी कि मेरा जीवन अंत हो जाए, तब मुझे लगा कि मुझे आशा को खोजना होगा। इस समय मैं कॉलेज में थी। यही वह समय था जब मैंने परमेश्वर को अपने जीवन में आने के लिए कहा। परमेश्वर ने मुझे प्रेम, सुरक्षा, क्षमा, सहारा, ढाढ़स, स्वीकृति, और जीवन का उद्देश्य दिखाया। वह मेरा बल है, और आज मैं यहाँ नहीं होती यदि परमेश्वर ने यह ना किया होता।”

भविष्य में क्या होनेवाला है किसे पता है? बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि वे एक गहरी खाई ‘फ़ॉक्स्होल’ में हैं। जीवन एक युद्धक्षेत्र/संघर्ष हो सकता है। हमारे मन की शांति पूरी तरह से डाँवाडोल हो सकती है। उन क्षणों में जब सब कुछ अशांत लगता है, हम लोग बहुधा परमेश्वर की ओर बढ़ते हैं। यह ठीक है, क्योंकि परमेश्वर, जो कि नित्य/अनंत है, यहाँ है, और वास्तव में हमारे जीवन में शामिल होना चाहता है। वह कहता है, “मैं ही यहोवा हूँ और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं। तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूँ और दूसरा कोई नहीं है।”4

हाँ, परमेश्वर को “बैसाखी” समझा जा सकता है, पर संभवत: सही मायने में देखा जाए तो वो ही एकमात्र है!

अदृश्य ‘फ़ॉक्स्होल’ (गहरी खाईयाँ)

हालांकि, कुछ लोग परमेश्वर की ओर तब भी मुड़ते हैं, जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है।

जॉन, जो कि अमरीका में एक छात्र है, ने बताया, “कॉलेज के अंतिम वर्ष तक, मैंने वह सब कुछ प्राप्त कर लिया था जो कि लोग कहते थे कि मुझे परिपूर्ण बनाएगा -- अपने कॉलेज में नेतृत्व की भूमिका, पार्टियों में जाना, पढ़ाई में अच्छे दर्जे प्राप्त करना, लड़कियों के साथ डेटिंग करना, आदि। सभी कुछ, जो मैं कॉलेज के दौरान करना और पाना चाहता था, मैंने किया -- फिर भी मैं अधूरा सा था। कहीं कुछ तो कमी थी, पर मुझे नहीं पता था की मैं और कहाँ जाऊँ। और हाँ, यह किसी को नहीं पता था कि मैं जीवन के विषय में क्या सोच रहा हूँ -- बाहर से मैं किसी को कुछ बताता या दिखाता नहीं था।”

जब सब कुछ सही चल रहा होता है, तब भी जीवन हमें एक ‘फ़ॉक्स्होल’ (खाई) पेश कर सकता है – एक आन्तरिक खाई जो कि खुली आँखों से हमें दिखाई नहीं देती, पर दिल में महसूस की जा सकती है। बेकी, जो कि अमरीका में इलीनोइस की एक छात्रा हैं, इस तथ्य को इस तरह वर्णित करती हैं: “आपने यह कितनी बार सोचा कि काश आपके पास उस तरह के कपड़े होते, या काश वह लड़का आपका बॉयफ़्रेंड होता, या काश आप किसी जगह पर जा सकते, तब आपका जीवन सुखी और संपूर्ण हो जाता? और, कितनी बार आपने उन कपड़ों को खरीदा, या उस लड़के के साथ डेट पर गयीं, उन जगहों पर घूमने गए, पर वहाँ से पहले से भी अधिक खालीपन लेकर लौटे?”

‘फ़ॉक्स्होल’ या खाई को महसूस करने के लिए हमें असफलता या त्रासदी की आवश्यकता नहीं है। अक्सर हमारे जीवन में शांति की कमी परमेश्वर की अनुपस्थिति होने के कारण होती है। परमेश्वर को जानने के बाद बेकी बताती हैं, “उस समय से मैंने बहुत संघर्ष किया और मेरे जीवन में बहुत परिवर्तन आया, पर अब मैं जो कुछ भी करती हूँ, उसे एक नए दृष्टिकोण के साथ देखती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि मुझे प्रेम करने वाला, अनंत परमेश्वर मेरे साथ है। मुझे विश्वास है कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो परमेश्वर और मैं साथ मिलकर संभाल नहीं सकते -- और जिस संपूर्णता को मैं इतनी कठिनाई से ढूँढ़ रही थी, अंत में वह मुझे मिल ही गई।”

जब परमेश्वर की उपस्थिति हमारे जीवन में होती है, तो हम आराम कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम परमेश्वर को जानने लगते हैं, और जो कुछ उसने हमें बाइबल में बताया है उसे सुनते हैं, वह हमारे जीवन में मन की शांति लाता है, क्योंकि हम उसे जान लेते हैं। हम जीवन को उसके नज़रिए से देखने लगते हैं, उसकी विश्वासयोग्यता और हमारी देखभाल करने की उसकी योग्यता से अवगत हो कर। इसलिए, भविष्य में चाहे जो भी होने वाला हो, हमें उसकी चिन्ता नहीं रहती है क्योंकि हम अपनी आशा को परमेश्वर, जो अपरिवर्तनशील है, उस के हाथ में दे देते हैं। वह हमारे जीवन में अपने आप को सिद्ध करने की प्रतीक्षा कर रहा है यदि हम उसकी ओर मुड़ें और उसे ढूँढें।

चट्टान पर निर्माण

क्या आप किसी चीज पर अपने जीवन का निर्माण कर रहे हैं? आप विश्वास करें या न करें, हर मनुष्य किसी न किसी चीज पर निर्माण कर रहा है। इसे हम ‘नींव’ या ‘बुनियाद’ कहते हैं। बुनियाद, जिस पर हम अपना विश्वास और अपनी आशा रख रहे हैं। हो सकता है वह (१) स्वयं अपने आप में हो-- “मैं जानता हूँ अगर मैं कठिन प्रयास करूँगा तो मैं अपने जीवन को सफल बना सकूँगा।” या (२) जीवन शैली में हो-- “अगर मैं बहुत पैसा कमाऊँगा तो जीवन अत्युत्तम होगा।” या (३) समयावधि में हो-- “भविष्य चीजों को बदल देगा।”

परमेश्वर का दृष्टिकोण अलग है। वह कहता है कि अपनी आशा और विश्वास अपने ऊपर रखना, दूसरों के ऊपर रखना, या इस संसार पर रखना, एक अस्थिर जमीन पर पैर रखने के समान है। इसके बदले, परमेश्वर चाहता है कि हम उसके ऊपर विश्वास करें। वह कहता है, “जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनाया था। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और वेगपूर्वक उस घर से टकराईं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। जो मेरी ये बातें सुनता है, किंतु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और वेगपूर्वक उस घर से टकराईं; और वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।”5

परमेश्वर को अपने जीवन में शामिल रखना बुद्धिमानी है उस समय के लिए जब आपदाएँ आती हैं। परंतु परमेश्वर चाहता है कि हम परिपूर्ण/बहुतायत का जीवन जीयें, भले ही परिस्थितियाँ कैसी भी हों। वह हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अपना सकारात्मक प्रभाव डालना चाहता है। जब हम उस पर और उसके शब्दों पर भरोसा करते हैं, तब हम ‘चट्टान’ के ऊपर निर्माण करते हैं।

मन की परम शांति

कुछ लोग करोड़पतियों की संतान होने में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं, या यह जानने में कि पढ़ाई में वे आसानी से अच्छे दर्जे प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ एक संबंध/रिश्ता बनाने में और भी बड़ी सुरक्षा है।

परमेश्वर शक्तिशाली है। हमारे विपरीत, परमेश्वर जानता है कि कल, अगले सप्ताह, अगले साल, अगले दशक में क्या होनेवाला है। वह कहता है, “मैं ही परमेश्वर हूँ और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है। मैं तो आदिकाल से ही अंत की बातें बताता आया हूँ।”6 वह जानता है कि भविष्य में क्या होनेवाला है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह जानता है कि भविष्य में आपके जीवन में क्या घटित होने वाला है, और वह आपके साथ होगा, यदि आपने अपने जीवन में उसे शामिल करने का चुनाव किया है। परमेश्वर कहता है कि, “वह हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक।”7 पर हमें उसे खोजने का एक सच्चा प्रयास करना होगा। वह कहता है, “तुम मुझे ढूंढ़ोगे, और मैं तुम्हें मिलूंगा। जब तुम मुझे सच्चे हृदय से खोजोगे, तब मुझे पाओगे।”8

इसका यह मतलब नहीं है कि जो परमेश्वर को जानते हैं वे कठिन समय से नहीं गुजरते। उन्हें भी गुजरना पड़ता है। यदि हमारे राष्ट्र को आतंकवादियों के आक्रमण का सामना करना पड़ा, पर्यावरण संबंधी या आर्थिक विपदाएँ आयीं, तो जो लोग परमेश्वर को जानते हैं वे भी इन संकटों से गुज़रेंगे। पर परमेश्वर की उपस्थिति उन्हें एक प्रकार की शक्ति और शांति प्रदान करती है। यीशु मसीह के एक अनुयायी ने इसे इस प्रकार बताया है, “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।”9

वास्तविकता बताती है कि हमें समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अगर हम परमेश्वर के साथ एक संबंध/रिश्ता रखते हुए उन समस्याओं का सामना करते हैं, तो हम एक अलग दृष्टिकोण और शक्ति के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं जो कि हमारी अपनी नहीं है। कोई भी समस्या जो हम पर आती है, परमेश्वर उन सबसे बड़ा है और वह उनका सामना करने के लिए हमें कभी अकेला नहीं छोड़ता है।

परमेश्वर परवाह करता है। परमेश्वर का महान सामर्थ्य, जो की हमारे जीवन में देखा जा सकता है, उसके गहरे प्रेम के साथ आता है। हो सकता है कि भविष्य में पूरे विश्व में एक ऐसी शांति हो जो कि पहले कभी न देखी गयी हो, या हो सकता है कि एक दूसरे के लिए जातीय घृणा और हिंसा, तलाक आदि, और भी बढ़ जाए। परंतु, दोनों ही परिस्थितियों में कोई हमें इतना प्रेम नहीं करेगा जितना कि परमेश्वर करेगा। कोई भी हमारी उतनी परवाह नहीं करेगा जितनी कि परमेश्वर करता है। उसका वचन बताता है कि, “यहोवा [परमेश्वर] भला है; संकट के दिन में वह दृढ़ गढ़ ठहरता है, और अपने शरणागतों की सुधी रखता है।”10 “अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”11 और, “यहोवा अपनी सब गति में धर्मी और अपने सब कामों में करूणामय है। जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात जितने उसको सच्चाई से पुकारते हें; उन सभों के वह निकट रहता है। वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है।”12

यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों से ये सांत्वना देनेवाले शब्द कहे, “क्या दो गौरैयाँ बहुत सस्ती नहीं बिकतीं? तो भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिये, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।”13 यदि आप परमेश्वर की ओर मुड़ेंगे, तो आप देखेंगे कि वह आपकी परवाह उस प्रकार करता है जिस प्रकार और कोई नहीं करता, और दूसरा कोई कर भी नहीं सकता।

परमेश्वर के द्वारा मन की शांति

हमें थोड़ा भी आभास नहीं है कि भविष्य में क्या होनेवाला है। यदि भविष्य कठिन समय लाता है, तो परमेश्वर हमारे लिए वहाँ हो सकता है। यदि सामान्य या सरल समय आता है, तब भी हमें परमेश्वर की आवश्यकता होगी ताकि वह हमारे अंदर के खालीपन को भर सके और हमारे जीवन को एक अर्थ दे।

सब कुछ कहे और करे जाने के बाद, सबसे महत्वपूर्ण क्या है? सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमारा परमेश्वर से अलगाव ना हो। क्या हम परमेश्वर को जानते हैं? क्या वह हमें जानता है? क्या हमने उसे अपने जीवन से बाहर निकाल दिया है? या हमने उसे अपने जीवन में आने दिया है? उसे जानने के द्वारा, वह हमें एक परिवर्तित दृष्टिकोण और आशा देता है। उसके साथ रिश्ता रखने के कारण, हम सभी तरह की परिस्थितियों में शांति से रह सकते हैं।

परमेश्वर हमारे जीवन का केन्द्र क्यों होना चाहिए? क्योंकि उसको जाने बिना कहीं भी शांति या आशा नहीं है। वह परमेश्वर है, हम नहीं। वह हमारे ऊपर आश्रित नहीं है, पर हमें उस पर आश्रित रहना ही पड़ता है। उसने हमारी रचना की ताकि हमें अपने जीवन में उसकी उपस्थिति की आवश्यकता रहे। हम अपने जीवन को उसके बिना जीने की कोशिश कर सकते हैं पर यह निरर्थक होगा।

परमेश्वर चाहता है कि हम उसे ढूँढ़े। वह चाहता है कि हम उसे जानें और उसे अपने जीवन में शामिल करें। पर एक समस्या है: हम सब ने उसे बाहर ही रोक दिया है। बाइबल इसे इस प्रकार वर्णित करती है, “हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया।”14 हम सब ने अपने जीवन को परमेश्वर के बिना चलाने की कोशिश की है। इसे ही बाइबल में “पाप” कहते हैं।

हेदर (Heather), जिसका उद्धरण ऊपर दिया गया है, पाप के बारे में यह कहती हैं: “जब मैंने स्टैनफोर्ड कॉलेज में पढ़ाई शुरू की, मैं ईसाई नहीं थी। दुनिया मेरे कदमों पर थी, क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए तैयार। मैंने राजनीतिक बैठकों में भाग लिया, नस्लवाद और सामाजिक न्याय पर कक्षाएँ लीं, और, अपने आपको सामुदायिक सेवा में लिप्त कर लिया। मुझे अपनी आंतरिक शक्ति पर भरोसा था जिसके द्वारा मैं इस संसार में एक महत्वपूर्ण अंतर ला सकूँ। मैंने सुविधाहीन, ग़रीब प्राथमिक स्कूल के बच्चों को ट्यूशन दीं; एक बेघर आश्रय में एक दिन का शिविर चलाया; भूखे लोगों को खिलाने के लिए खाना जमा किया। फिर भी, जितन ज़्यादा मैं संसार को बदलने की कोशिश करती, उतना ही ज्यादा मैं निराश हो जाती। मैंने नौकरशाही, उदासीनता और पाप का सामना किया। मुझे लगने लगा कि शायद मानव प्रकृति को एक बुनियादी बदलाव की आवश्यकता है।”

मन की शांति=परमेश्वर के साथ शांति

बदलता समय और प्रौद्योगिक उन्नति वास्तव में जीवन की भव्य योजना में बहुत मायने नहीं रखते। क्यों? क्योंकि मनुष्य के रूप में हमारी मूल समस्या यह है कि हमने अपने आपको परमेश्वर से बहुत दूर कर लिया है। हमारी बड़ी समस्याएँ शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक हैं। परमेश्वर यह जानता है, इसलिए हमारे और उसके बीच इस अलगाव का एक समाधान उसने हमें दिया है। उसने हमारे लिए एक रास्ता बनाया है जिससे हम उसके पास वापस पहुँच सकें…यीशु मसीह के द्वारा।

बाइबल कहती है, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”15 यीशु मसीह को हमारे पापों के लिए, हमारी जगह, क्रूस (मृत्यु का एक प्राचीन तरीका) पर चढ़ाया गया। वह मर गए, गाड़े गए, और फिर से जी उठे। उनके बलिदान के कारण, हम परमेश्वर के साथ एक संबंध में आ सकते हैं -- “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”16

वास्तव में यह बहुत आसान है: परमेश्वर हमारे साथ एक उत्तम संबंध चाहता है-- अतः उसने उस रिश्ते को यीशु मसीह के द्वारा संभव बनाया। अब यह हमारे ऊपर है कि हम परमेश्वर को खोजें और उसे अपने जीवन में आने का निमंत्रण दें। अधिकतर लोग ऐसा प्रार्थना के द्वारा करते हैं। प्रार्थना का अर्थ है सच्चाई के साथ परमेश्वर से बात करना। कुछ इस तरह कहकर आप इसी समय परमेश्वर से बात कर सकते हैं:

“प्रभु मैं आपको जानना चाहता/चाहती हूँ। अब तक मैंने आपको अपने जीवन में शामिल नहीं किया है, पर अब मैं उसे बदलना चाहता/चाहती हूँ। आपसे अलगाव को दूर करने के आपके द्वारा दिए गए सुझाव का मैं लाभ उठाना चाहता/चाहती हूँ। मेरे स्थान पर यीशु की मृत्यु पर मैं विश्वास कर रहा/रही हूँ, ताकि मुझे क्षमा मिले और आपके साथ संबंध बना सकूँ। मैं चाहता/चाहती हूँ कि आप इसी समय से मेरे जीवन में शामिल हों जाएँ।”

क्या आपने सच्चे मन से परमेश्वर को अपने जीवन में शामिल होने को कहा है? केवल आप और परमेश्वर ही निश्चित रूप से जानते हैं। यदि अपने ऐसा किया है, तो आगे बहुत कुछ है। परमेश्वर के साथ संबंध के कारण, वह आपके वर्तमान जीवन को अधिक संतुष्ट बनाने का वादा करता है -“वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।17 वह वादा करता है की आप “उसके साथ वास करेंगे।”18 और वह आपको “अनन्त जीवन” देता है।19

मेलिसा, न्यू इंगलैण्ड की एक छात्रा, परमेश्वर के बारे में कहती हैं, “जब मैं बहुत छोटी थी तब मेरी माँ ने मेरे पिता को तलाक दे दिया था। मुझे पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है। मैं केवल यह जानती थी कि मेरे पिता अब घर नहीं आते थे। एक बार मैं अपनी नानी से मिलने गई और मैंने उनसे कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे पिता मुझे दुख देकर, क्यों गायब हो गए हैं। मेरी नानी ने मुझे गले से लगाकर कहा कि एक है जो तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा, और वह यीशु मसीह है। उन्होंने बाइबल से इब्रानियो 13:5 और भजन संहिता 68:5 सुनाया, जो ये कहते हैं, ‘मैं तुम्हे कभी न छोड़ूँगा ना ही कभी त्यागूँगा’ और ‘जिनके पिता नहीं हैं मैं उनका पिता बनूँगा’। मैं यह सुनकर बहुत उत्साहित हुई कि परमेश्वर मेरे पिता बनना चाहते हैं।”

इस संसार, या हमारे व्यक्तिगत जीवन में चाहे जो भी हो रहा हो, आपके मन में यह जानकर शांति होगी कि परमेश्वर आपके लिए आपके साथ वहाँ है। भविष्य में क्या होनेवाला है इसकी परवाह करे बिना यह जान लें कि परमेश्वर आपके साथ हमेशा रहेगा।

 मैंने यीशु को अपने जीवन में आने के लिए कहा (कुछ उपयोगी जानकारी इस प्रकार है) …
 हो सकता है कि मैं अपने जीवन में यीशु को बुलाना चाहूँ, कृपया मुझे इसके बारे में और समझाएँ…
 मेरा एक सवाल है …

फुटनोट: बाइबल में (1) यशायाह 44:8 और मलाकी 3:6 (2) इब्रानियो 13:8 (3) यूहन्ना 14:27 और 16:33 (4) यशायाह 43:11 और यशायाह 45:22 (5) मत्ती 7:24-27 (6) यशायाह 46:9-10 (7) भजन संहिता 46:1 (8) यिर्मयाह 29:13 (9) 2 कुरीन्थियों 4:8-9 (10) नहूम 1:7 (11) 1 पतरस 5:7 (12) भजन संहिता 145:17-19 (13) मत्ती 10:29-31 (14) यशायाह 53:6अ (15) यूहन्ना 3:16 (16) यूहन्ना 1:12 (17) यूहन्ना 10:10 (18) यूहन्ना 14:23 (19) 1 यूहन्ना 5:11-13