×
खोजें
EveryStudent.in
जीवन और परमेश्वर के बारे में सवालों का
 पता लगाने के लिए एक सुरक्षित जगह
रिश्ते

यौन क्रिया और अंतरंगता की खोज

पता कीजिए प्रेम कैसे किया जाता है और प्रेम कैसे पाया जाता है ? अपने रिश्तों में असली अंतरंगता अनुभव कीजिए ---------

WhatsApp Share Facebook Share Twitter Share Share by Email More PDF

डिक पुरनेल द्वारा

डॉक्टर हेनरीबैन्ट ने कॉलेजिएट चैलेंज मैगजीन ( पत्रिका) में कहा कि जब जोड़े उसके पास आते हैं तो उनका एक सिंड्रोम, एक ढाँचा या प्रतिरूप होता है। वे कहते हैं, शुरू में यौन बहुत रोमांचक लगता था। फिर पहले मुझे अपने बारे में अजीब लगने लगा और फिर मुझे अपने सहभागी के बारे में अजीब लगने लगा। हममें विवाद हुआ और झगड़ा हुआ और अंत में हमारा रिश्ता टूट गया। अब हम शत्रु हैं।

इस सिंड्रोम को मै सुबह के बाद का सिंड्रोम कहता हूँ। हम जागते हैं और पाते हैं कि वह अंतरंगता वास्तव में नहीं है। यौन संबंध अब हमें तृप्त नहीं करते और अंत में हमें जो उससे मिलता है वह शायद हम चाहते ही नहीं थे। आपके पास केवल दो आत्मकेंद्रित लोग हैं,जो आत्मसंतुष्टि ढूँढ़ रहे हैं। विशुद्ध प्रेम और अंतरंगता के तत्वों को तुरंत नहीं पाया जा सकता है और सद्भाव की खोज में आप अपने आप को असंतुलन की अवस्था में पाते हैं।

अंतरंगता का अर्थ जिस्मानी होने से कहीं ज्यादा होता है।

हममें से हरेक के जीवन में पाँच महत्वपूर्ण स्तर होते हैं। वे हैं – शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक। इन पाँचों को इस प्रकार बनाया गया है कि ये आपस में मिलकर सद्भाव से काम करें। अंतरंगता की खोज में हम उसका समाधान आज या कल में चाहते हैं। हमारी एक समस्या यह है कि हम “तुरंत” संतुष्टि चाहते हैं। जब एक रिश्ते में हमारी अंतरंगता की जरूरत पूरी नहीं होती तो हम “तुरंत” एक समाधान ढूँढ़ने की चेष्टा करते हैं। हम शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक,सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर कहाँ देखते हैँ ? हम जिस्मानी स्तर पर उसे देखते हैं। शारीरिक तौर पर किसी के साथ अंतरंग होना बाकी चार स्तरों से ज्यादा आसान है। आप अपने से विपरीत लिंगवाले व्यक्ति के साथ एक घंटे में या आधे घंटे में शारीरिक रूप से अंतरंग हो सकते हैं – यह आपकी तीव्र इच्छा पर निर्भर करता है ! पर आपको जल्दी ही यह पता चल जाता है कि यौन सतही इच्छा की एक अस्थायी राहत है। इससे भी ज्यादा जो गहरी जरूरत है वह अभी भी पूरी नहीं हुई है।

जब उत्तेजना खत्म हो जाएगी और आप जितना ज्यादा यौन करेंगे, उतना ही वह आपको कम पसंद आएगा। तब आप क्या करेंगे ? हम यह कहकर उसका औचित्य स्थापन करेंगे, “हम प्रेम करते हैं, नहीं, इसका मतलब हम सच में प्यार करते हैं।” पर उसके बाद भी हम अपने आप को दोषी मानते हैं और अतृप्त महसूस करते हैं। अमेरिका के परिसरों में मैं आदमी और औरतों को अंतरंगता को ढूँढ़ने का प्रयास करते देखता हूँ, “ एक रिश्ते को छोड़कर वे दूसरे रिश्ते से आशा करते हैं, इस बार मुझे ऐसा रिश्ता मिलेगा जो अंत तक रहेगा।”

मैं मानता हूँ कि वास्तव में हम जो चाहते हैं वह यौन नहीं है बल्कि वह अंतरंगता है।

आज अंतरंगता जैसे शब्द को यौन के अर्थ में लिया जा रहा है। पर यह इससे कहीं ज्यादा है। यह हमारे जीवन के सभी विभिन्न आयामों को इसमें शामिल करता है – जी हाँ शारीरिक, पर साथ में मानसिक, संवेगात्मक,सामाजिक और आध्यात्मिक पहलू भी है। वास्तव में अंतरंगता का अर्थ है पूरे जीवन का साझा। क्या हम सबने कभी भी किसी भी समय निकटता, एकजुटता या अपने जीवन को पूर्ण रूप से किसी के साथ साझा करने की इच्छा नहीं की ?

अंतरंगता का डर – प्रेम पाने का डर ?

मार्शल हॉज ने एक पुस्तक लिखी है फोर इयर्स ऑफ लव ( प्रेम के चार साल ), उसमें वे कहते हैं, “हम प्रेम के भाव, नजदीकी और कोमलता के क्षण के लिए तरसते हैं, पर बहुत जल्दी महत्वपूर्ण बिन्दु पर

बहुत बार हम खुद पीछे हट जाते हैं। हम नजदीकी से, प्रेम से डरते हैं।“ बाद में उसी पुस्तक में हॉज बताते हैं, “जितना आप किसी के नजदीक आते हैं वहाँ दर्द की संभावना ज्यादा रहती है।“ बहुत बार दर्द का डर हमें सच्ची अंतरंगता को ढूढ़ने से दूर ले जाता है।

मैं दक्षिण इलिनोइस के एक विश्वविद्यालय में व्याख्यान माला दे रहा था। एक बैठक के बाद एक महिला मेरे पास आई और उसने कहा, “मुझे आपसे अपने प्रेमी की समस्या के बारे में बात करनी है। हम साथ बैठे और उसने मुझे अपनी तकलीफों के बारे में बताना शुरू किया।कुछ क्षणों के बाद , उसने यह बयान दिया,”अब मैं ऐसे कदम उठाना चाहती हूँ ताकि मुझे फिर कभी दुख न पहुंचे।” मैंने उससे कहा, “दूसरे शब्दों में तुम यह कह रही हो कि तुम दोबारा कभी प्रेम ही नहीं करोगी।” उसने सोचा कि मैंने उसे गलत समझा है, अतः उसने फिर कहा, “नहीं मैं वह नहीं कह रही हूँ। मैं केवल यह कह रही हूँ कि मैं दोबारा दुख नहीं पाना चाहती हूँ। मैं अपने जीवन में दर्द नहीं चाहती हूँ। मैंने कहा, “यह सही है तुम अपने जीवन में प्रम नहीं चाहती हो देखो ऐसी कोई चीज नहीं है जैसे “बिना दर्द के प्रेम” हम जब किसी के भी नजदीक जाते हैं, वहाँ दर्द की बड़ी सशक्तता होती है।

मैं यह अनुमान लगा सकता हूँ कि आप तथा लगभग सौ प्रतिशत जनसंख्या यह कहेगी कि उन्हें रिश्ते में पहले भी दुख मिला है। प्रश्न यह है कि आप उस कष्ट को कैसे संभालेंगे ? उस दर्द का छलावरण करने के लिए हममें से बहुत से लोग जिन्हे मैं “डबल साइन ” ( दोहरा हस्ताक्षर ) कहती हूँ लोगों को देते हैं। हम एक व्यक्ति से यह कहते हैं,”देखिये मैं चाहता हूँ कि आप मेरे नजदीक आइए। मैं आपसे प्रेम करना और प्रेम पाना चाहता हूँ ----- पर एक मिनट रुकिए, मैं पहले भी प्रेम में दुख पा चुका हूँ। नहीं,मैं इस विषय पर बात नहीं करना चाहता हूँ। मैं उन चीजों के बारे में सुनना भी नहीं चाहता हूँ।” हम अपने दिल के चारों ओर दीवारें बना लेते हैं ताकि बाहर का कोई हमें तकलीफ न पहुँचा सके। पर वही दीवार जो लोगो को बाहर रखती है, हमें अंदर फँसा देती है। परिणाम ?अकेलापन हमें घेर लेता है और सच्ची अंतरंगता और प्रेम पाना असंभव हो जाता है।

अगर आपने इस प्रकार प्रेम का अनुभव किया है तो क्या ?

प्रेम एक संवेग और एक अच्छी भावना से कहीं ज्यादा है। पर हमारे समाज ने वह लिया जो परमेश्वर ने प्रेम, यौन और अंतरंगता के बारे में कहा और उसे साधारण संवेग और भावना में परिवर्तित कर दिया। परमेश्वर ने बाइबल में प्रेम का विस्तृत वर्णन किया है, खासकर 1कुरिन्थियों की पुस्तक में, चैप्टर 13 ताकि आप पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा दी गई प्रेम की परिभाषा को समझ सकें। (1कुरिन्थियों की पुस्तक में, चैप्टर 13:4-7) में देखिए। अगर एक मनुष्य आपको उस तरह प्यार करता है जिस तरह परमेश्वर कहते हैं कि हमें प्यार पाना चाहिए, तो क्या आपकी जरूरतें पूरी होती हैं ?

  • अगर किसी व्यक्ति का प्रेम धीरजवन्त है और कृपाल है; वह डाह नहीं करता; अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
  • वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
  • कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
  • वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।

इस प्रकार परमेश्वर ने प्रेम की परिभाषा दी है। वह चाहता है हम रिश्तों में यह अनुभव करें। आप देखेंगे कि इस प्रकार का प्रेम “दूसरे व्यक्ति” को केंद्रित करता है। खुद ढूढ़ने के बजाय वह देनेवाला है। समस्या वहीं है। कौन इस पर खरा उतर सकता है?

वास्तविक या सच्ची अंतरंगता के लिए, हमें पहले यह महसूस करना होगा कि हमें प्रेम किया जा रहा है।

हमें रिश्तों में इस प्रकार का प्रेम महसूस करने के लिए पहले ईश्वर का प्रेम अपने लिए अनुभव करना होगा। आप इस प्रकार के प्रेम में किसी के प्रति खरे नहीं उतर सकते जब तक कि आपने इस तरह का प्रेम अपने लिए अनुभव नहीं किया हो। परमेश्वर जो आपको जानते है, आपके बारे में सब कुछ जानते हैं, आपको पूर्ण रूप से प्रेम करते हैं।

परमेश्वर हमारे पुराने पैगम्बर यिर्मयाह के द्वारा बताते हैं, “ मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ; इस कारण मैं ने तुझ पर अपनी करुणा बनाए रखी है।”1 अतः ईश्वर का प्रेम आपके लिए कभी परिवर्तित न होगा।

ईश्वर हमें इतना प्यार करते हैं कि उसने ईसामसीह को हमारे पापों के लिए शूली पर चढ़ने दिया ताकि हम पाप से मुक्त हो सकें। हम बाइबल में पढ़ते हैं, “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”2 जब हम परमेश्वर की तरफ देखते हैं और उनकी क्षमा स्वीकार करते हैं, तब हम उनके प्रेम का अनुभव करते हैं।

परमेश्वर हमें बताते हैं, ““ यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।”3 परमेश्वर केवल हमारे पापों के लिए ही हमें क्षमा नहीं करते बल्कि वे उसे भूल जाते हैंऔर हमें पवित्र या स्वच्छ कर देते हैं।

यदि हम इस प्रकार का प्रेम पाएँ तो कैसा होगा ?

चाहे कुछ भी हो जाए ईश्वर हमें लगातार प्रेम करते रहते हैं। बहुत बार रिश्ते खत्म हो जाते हैं जब उसमें किसी चीज को बदला जाए, जैसे तबाह कर देनेवाली बड़ी दुर्घटना या आर्थिक स्थिति में बड़ा नुकसान। परमेश्वर का प्रेम हमारे शारीरिक रूप, कौन या हम क्या हैं इस पर आधारित नहीं है।

जैसा कि आप देखते हैं, ईश्वर का दृष्टिकोण प्रेम के प्रति उससे बिल्कुल अलग है जैसा समाज हमें बताता है। क्या आप इस तरह के प्रेम से भरे रिश्ते की कल्पना कर सकते हैं ? परमेश्वर हमें बड़ी सरलता से कहते हैं कि यदि हम उनसे माँगें तो उनकी क्षमा और उनका प्रेम हमारा है। हमारे लिए यह उनका उपहार है। पर हम उस उपहार को अस्वीकार करते हैं, तो खुद हम अपने आप को पूरी पूर्णता पाने से, सच्ची अंतरंगता और जीवन का सही लक्ष्य प्राप्त करने से वंचित करते हैं।

परमेश्वर का प्रेम इसका उत्तर देता है। इसके लिए हमें केवल विश्वास और प्रतिबद्धता के साथ प्रतिक्रिया करनी है। बाइबल ईसामसीह के बारे में कहती है,” परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”4 परमेश्वर ने अपने इकलौते पुत्र ईसामसीह को हमारी जगह मरने के लिए भेजा। लेकिन यहाँ पर कहानी का अंत नहीं होता है। तीन दिन बाद, ईसामसीह मरकर पुनर्जीवित हुए। परमेश्वर होने के कारण, वे आज भी जीवित हैं और अपना प्रेम आपके हृदय को देना चाहते हैं। एक बार यदि आप उन्हें स्वीकार करते हैं तो आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि वह आपके जीवन में और आपके रिश्तों में क्या कर सकते हैं।

परमेश्वर के शब्द हमें बताते हैं,” जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है॥”

ईश्वर चाहते हैं कि हम जीवन पाएँ, पर आज के लिए नहीं बल्कि अनन्तकाल तक। अगर हम उन्हें अस्वीकार करते हैं तो पाप के परिणाम का वरण करते हैं जो कि मृत्यु है और अनन्तकाल तक उनसे अलगाव होगा।5

यह ईसामसीह का अभिनन्दन है, उन्हें अपने जीवन में स्वीकार करना और उनपर विश्वास करना। इससे हमारा जीवन संतुलित रहता है। ईश्वर पर विश्वास उसकी क्षमा को शुरू कर देता है। हमें किसी से छिपने की जरूरत नहीं है, न ही अपने रास्ते जाने की जरूरत है।वह हमारे साथ है। हमें उसके साथ शांति है।

जब हम अपना विश्वास और निर्भरता उसपर रखते हैं, वह हमारे जीवन में ही अपना घर बना लेता है और हमें उसके साथ अंतरंगता हो जाती है। गहरे पाप, गहरी आत्मकेंद्रितता,भारी समस्याएं,संघर्ष को दूर करने के लिए उसकी क्षमा हमारे साथ होती है।

पूरी बाइबल में यौन के प्रति परमेश्वर की मनोवृत्ति बिल्कुल साफ है। परमेश्वर ने यौन को केवल विवाह के लिए बचा कर रखा है । वह हमें दुखी करने के लिए ऎसा नहीं करना चाहता है बल्कि वह हमारे ह्रदय को सुरक्षित रखना चाहता है। वह हमारे लिए एक सुरक्षा का आधार बनाना चाहता है ताकि हम जब वैवाहिक जीवन में प्रवेश करें, तो उसकी अंतरंगता परमेश्वर के प्रेम और बुद्धि पर आधारित हो।

अंतरंगता सुरक्षा की भावना और प्यार किए जाने पर पैदा होती है।

जब हम अपने आप को ईसामसीह को सौंप देते हैं, वह हमें दिन प्रतिदिन एक नया प्रेम और नई शक्ति देता है। जिस अंतरंगता को हम ढूढ़ते हैं, यही वह अंतरंगता है जो संतुष्ट होती है। परमेश्वर हमें ऎसा प्रेम देता है जो हमें छोड़ता नहीं और बढ़ते और बदलते समय के साथ खत्म नहीं होता है। उसके साथ उस मिलाप के मध्य उसका प्यार दो व्यक्तियों को एक दूसरे के समीप लाता है। डेटिंग के रिश्ते में जब आप एक दूसरे के समीप आते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं और आगे बढ़ते हैं तो केवल आध्यात्मिक रूप से नहीं बल्कि सामाजिक, मानसिक और संवेगात्मक रूप से आप एक सच्चा, परवाह करनेवाला और अंतरंग रिश्ता कायम कर सकते हैं जो पूर्णता से भरा और रोमांचक हो। जब रिश्ता बढ़कर विवाह में परिवर्तित होता है तब यौन संबंध उस नींव को और मजबूत करता है, जो कि स्थापित हो चुकी है।

हमारे किसी भी रिश्ते में जब हम यह जानते हैं कि हमें परमेश्वर का प्रेम प्राप्त है, तब हम दूसरों से दिल खोलकर और अधिक प्यार करने में स्वतंत्र होते हैं। हम संवेगात्मक रूप से कम जरूरतमंद होते हैँ। जलन, कड़ुवाहट और बेइमानी बहुत से रिश्तों का विवरण देती है, जो हमारा एकमात्र विकल्प नहीं है। हमें पता चलता है कि हमें उसमें नहीं पड़ना चाहिए बल्कि हमें सभी खेलों को एक तरफ करके ईमानदार होना चाहिए और अपराधों को क्षमा कर देना चाहिए। साधारण रूप से, जैसे ही हम ईश्वर का प्रेम अनुभव करते हैं, वह हमें एक अलग तरीके से दूसरों के साथ रिश्ता बनाने के लिए प्रेरित करता है।

क्या आप ईश्वर को जानना चाहेंगे और आपके जीवन और आपके रिश्तों में उसका पथप्रदर्शन चाहेंगे ?

आप इसी समय ईसामसीह को विश्वास द्वारा प्रार्थना करके पा सकते हैं। प्रार्थना परमेश्वर से बात करने के समान है। परमेश्वर आपके हृदय को जानता है। उसे आपके शब्दों की परवाह नहीं है। वह आपके हृदय की मनोवृत्ति के साथ है। निम्नलिखित प्रार्थना का सुझाव दिया जाता है, “ प्रभु ईसामसीह मुझे आपकी जरूरत है। मेरे पापों के लिए शूली पर चढ़ने के लिए धन्यवाद। मैं अपने जीवन का द्वार खोलता हूँ और अपने मालिक और रक्षक के रूप में आपका स्वागत करता हूँ। मेरे पापों को क्षमा करने के लिए और मुझे अनंत जीवन देने के लिए धन्यवाद। मेरे जीवन को अपने नियंत्रण में लीजिए और मुझे उस तरह का इंसान बनाइए जैसा कि आप चाहते हैं कि मैं बनूँ।”

क्या यह प्रार्थना आपके हृदय की इच्छा को प्रकट करती है ? अगर यह करती है, इस प्रार्थना को इसी समय से कीजिए। ईसामसीह पर अपना पूर्ण विश्वास रखने पर वे आपके जीवन में अवश्य आएँगे, जैसा कि उन्होंने वायदा किया है। यह उनके साथ एक रिश्ते की शुरुआत होगी और जैसे-जैसे आप उनको और ज्यादा जानेंगे यह रिश्ता और गहरा होता जाएगा। उनके साथ, उन्हें जीवन का केंद्र बनाकर आपका जीवन एक पूर्ण नया आयाम ले लेगा – जो आध्यात्मिक होगा – आपके सभी रिश्तों में एक पूर्णता और सामंजस्य ले कर आएगा।

अपने प्रति ईश्वर के प्रेम को जानकर और अनुभव करके, आप ईश्वर के प्रेम के साथ आप दूसरों से प्रेम कर सकेंगे जो कि आपको सच्ची अंतरंगता की गहराई तक ले जाने में आपकी सहायता करेगा।

 मैंने यीशु को अपने जीवन में आने के लिए कहा (कुछ उपयोगी जानकारी इस प्रकार है) …
 हो सकता है कि मैं अपने जीवन में यीशु को बुलाना चाहूँ, कृपया मुझे इसके बारे में और समझाएँ…
 मेरा एक सवाल है …

डिक पुरनेल ने 450 से ज्यादा विश्वविद्यालय और कॉलेज में रहनेवाले छात्रों से इस विषय पर बात की। वह 12 किताबों के लेखक हैं, जिनमें ये किताबें भी हैं –बिकमिंग ए फ्रेंड एण्ड लवर और फ्री टू लव अगेन : कमिंग टू टर्म्स विथ सेक्सुअल रिग्रेट

फुटनोट: (1) यिर्मयाह 31:3 (2) यूहन्ना 3:16 (3) 1यूहन्ना 1:9 (4) यूहन्ना 1:12 (5) यूहन्ना 3:36