बाइबल 40 लेखकों के द्वारा, 1500 साल की अवधि के दौरान लिखी गई। अन्य धार्मिक लेखों के विपरीत, बाइबल वास्तविक घटनाओं, स्थानों, लोगों और उनकी बातचीत का विवरण देती है जो यथार्थ में घटित हुए। इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं ने बाइबल की प्रामाणिकता को बार–बार स्वीकारा है।
लेखकों के लिखने के तरीके और उनके व्यक्तित्व का प्रयोग करते हुए, परमेश्वर हमें बताता है कि वह कौन है और उसे जानने का अनुभव क्या होता है।
बाइबल के 40 लेखक, निरंतर एक ही प्रधान संदेश देते हैं: परमेश्वर, जिसने हमें रचा है, हमारे साथ एक रिश्ता रखना चाहता है। वह हमें उसे जानने के लिए और उसपर विश्वास करने के लिए कहता है।
बाइबल हमें केवल प्रेरित ही नहीं करती, बल्कि हमें जीवन और परमेश्वर के बारे में बताती है। हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर ना सही, पर बाइबल पर्याप्त प्रश्नों के उत्तर देती है। यह हमें बताती है कि किस प्रकार एक उद्देश्य और अनुकंपा के साथ जिया जा सकता है। कैसे दूसरों के साथ संबंध बनाए रखे जा सकते हैं। यह हमें परमेश्वर की शक्ति, मार्गदर्शन और हमारे प्रति उसके प्रेम का आनन्द लेने के लिए हमें प्रोत्साहित करती है। बाइबल हमें यह भी बताती है कि किस प्रकार हम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रमाण के विभिन्न वर्ग बाइबल की ऎतिहासिक यथार्थता का समर्थन करते हैं, और इसके साथ ही इसकी दिव्य ग्रन्थकारिता का दावा भी करते हैं। यहाँ कुछ कारण हैं जो बताते हैं कि आप बाइबल पर क्यों विश्वास कर सकते हैं। (यदि आप किसी विशेष शीर्षक को देखना चाहते हैं तो यहाँ पर लेख के उपशीर्षक दिए गए हैं।)
पुरातत्वशास्त्र यह सिद्ध नहीं कर सकता है कि बाइबल हमारे लिए परमेश्वर का लिखा हुआ शब्द है। फिर भी, पुरातत्वशास्त्र बाइबल की ऎतिहासिक यथार्थता की पुष्टि कर सकता है (और करता है)। पुरातत्वशास्त्रियों ने लगातार सरकारी अधिकारियों, राजाओं, शहरों, और बाइबल में बताए गए त्योहारों की खोज की है – विशेष रूप से तब जब इतिहासकारों को ऐसा लगा कि ये लोग और स्थान अस्तित्व में नहीं हैं। उदाहरणस्वरूप – यहुन्ना का सुसमाचार हमें बताता है, कि यीशु मसीह ने एक अपंग की चंगाई ‘बेथेस्डा के कुंड’ के बगल में की। पाठ में पाँच बरामदोंं (रास्तों) का भी वर्णन है जो कुंड की तरफ जाते थे। विद्वान यह नहीं मानते थे कि इस कुंड का कभी अस्तित्व था, जब तक कि पुरातत्ववेत्ताओं ने उसे जमीन से 40 फीट नीचे, पाँच बरामदों समेत पूर्ण नहीं पाया।1
बाइबल में जबरदस्त मात्रा में ऎतिहासिक विवरण दिए गए हैं, कुछ ऎसे भी हैं जिनका विवरण बाइबल में है पर पुरातत्व शास्त्र उसे अभी तक खोज नहीं पाया है। हालांकि, पुरातत्ववेत्ताओं की किसी भी खोज में और बाइबल के अभिलेखों में कहीं कोई मतभेद नहीं है।2
इसके विपरीत, समाचार संवाददाता ली स्ट्रोबेल ‘मॉर्मन की पुस्तक’ (बुक ओफ़ मॉर्मन) पर यह टिप्पणी करते हैं: “पुरातत्व शास्त्र बार–बार अपना दावा उन घटनाओं के बारे में, जो ऎसा माना जाता है बहुत समय पहले अमेरिका में हुई थीं, सिद्ध करने में असफल रहा है। मुझे याद है कि मैंने स्मिथसोनियन इन्स्ट्यूट को यह जाँच करने के लिए लिखा था कि मॉर्मनवाद के पक्ष में दावा करनेवालों का कोई सबूत है या नहीं? असंदिग्ध शब्दों में यह बताया गया कि पुरातत्ववेत्ता ‘नए संसार (न्यू वर्ल्ड) और पुस्तक की विषयवस्तु के बीच कोई सीधा संबंध नहीं देख पाए।’” पुरातत्ववेत्ता, उन शहरों, लोगों, नामों, या उन जगहों को, जो कि “मॉर्मन की पुस्तक” में लिखी हैं, कभी खोज नहीं पाए।3
बहुत सारी पुरानी जगहें, जो कि लूका के द्वारा बाइबल के ‘नए नियम’ में ‘प्रेरितों के काम’ में बताई गयीं हैं, पुरातत्ववेत्ताओँ के द्वारा खोज ली गई हैं। “सब मिलाकर, लूका ने बत्तीस (32) देश, चौवन शहर (54) और नौ (9) द्वीप, बिना गलती के बताए हैं।”4
पुरातत्व शास्त्र ने बाइबल के विषय़ में बहुत से गलत पाए गए सिद्धान्तों का खंडन किया है। जैसे कि– आज भी एक सिद्धान्त बहुत से महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, जो यह दावा करता है कि मूसा ‘पेंटाट्यूक’ (बाइबल की पहली पाँच पुस्तकें) नहीं लिख सकते थे, क्योंकि उनके समय में लिखाई की खोज नहीं हुई थी। फिर पुरातत्ववेत्ताओं ने ‘काले दस्ते’ की खोज की। “उसके ऊपर पत्ती के आकार के वर्ण थे, और उसमें ‘हमुरब्बी’ के विस्तृत नियम लिखे थे। क्या वह मूसा के समय के बाद का था? नहीं! वह मूसा के समय से पहले का था; केवल यही नहीं, वह अब्राहम से भी पहले का था (2,000 बी.सी. (ईसा पूर्व))। वह मूसा के लेखों से कम से कम तीन शताब्दी पूर्वकालीन था।”5
पुरातत्व शास्त्र दृढ़ता से, और लगातार बाइबल की ऎतिहासिक यथार्थता की पुष्टि करता है।
एक मानचित्र जिसमें पुरातत्व शास्त्र की कुछ प्रमुख खोजों का सूचीकरण किया गया है-
पुरातात्विक खोज | महत्त्व |
मारी तख्ते | 20,000 से अधिक कीलाक्षर तख्ते, जो अब्राहम के समयकाल से पहले की तारीख के हैं, उत्पत्ति की बहुत सारी पितंत्रात्मक परम्पराओं को बताता है। |
एब्ला तख्ते | 20,000 से अधिक तख्ते, बाइबल की व्यवस्थाविवरण के नियमों की तरह कानूनयुक्त हैं। जिन्हें पहले काल्पनिक मानते थे, उन 5 शहरों सदोम, गोमोराह, अदमा, सबोयीम और सोअर की खोज कर ली गयी है। |
नूज़ी तख्ते | 14 और 15वीं सदी के विस्तृत तौर-तरीके पितंत्रात्मक खातों के समानांतर चलते हैं (जैसे कि बाँझ पत्नियों की नौकरानियों का उनके लिए बच्चे पैदा करना) |
काला दस्ता | सिद्ध करते हैं कि लिखाई और लिखे गए कानून मूसा की विधि के तीन सदी पहले से थे। |
कारनाक मंदिर की दीवारें, मिस्र देश | दसवीं सदी बी.सी. में अब्राहम का उल्लेख पाया जाता है। |
इशुन्ना का कानून (लगभग 1950 बीसी) लिपित-ईस्तर कोड (लगभग 1860 बीसी) हम्मुराबी का कानून (लगभग 1700 बीसी) |
बताता है कि ‘पेंटाट्यूक’ के कानून कोड उस काल के लिए बहुत जटिल नहीं थे। |
रास शम्रा तख्ते | इब्रानी कविता के बारे में जानकारी देते हैं। |
लाकीश पत्र | राजा नबूकदनेस्सर के यहूदा राज्य के आक्रमण के बारे में बताता है और यरमिया के समय की अन्तर्दृष्टि देता है। |
गदल्याह मुहर | गदल्याह का संदर्भ बाइबल में ‘२ राजाओं २५: २२’ में किया गया है। |
साइरस सिलेंडर | राजा साइरस का विधान, बाइबल के विवरण को प्रमाणित करता है। यहूदियों को येरूशलम के मंदिर को फिर से बनाने की अनुमति देती है (देखें 2 इतिहास 36:23, एज़्रा 1:2-4) |
मुआबी पत्थर | यह पत्थर ओमरी, इस्राएल के छठे राजा, के बारे में जानकारी देता है। |
शाल्मनइसर 3 का ‘ब्लैक ओबिलिस्क’ | इस्राएल के राजा जेहू के असीरियन (अश्शूर राज्य के) राजा की अधीनता स्वीकार करने का विवरण। |
टेलर प्रिस्म | इसमें एक असीरियन (अश्शूरी) पाठ है जो यरूशलेम पर, इस्राएल के राजा हिजकिय्याह के समय सन्हेरीब द्वारा किए गए आक्रमण के बारे में बताता है। |
आलोचकों के पिछले आरोप | पुरातत्व शास्त्र द्वारा उत्तर |
मूसा पेंटाट्यूक नहीं लिख सकते थे क्योंकि वह लिखाई की खोज के पहले के समय के थे। | लिखाई का अस्तित्व मूसा से कई सदियों पहले से था। |
अब्राहम के गृहनगर ‘ऊर’ का कोई अस्तित्व नहीं है। | ‘ऊर’ को खोज निकाला गया। उसके एक स्तंभ पर अब्राहम लिखा था। |
‘पेट्रा’ नामक शहर, जो ठोस चट्टान से बना था, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। | ‘पेट्रा’ को खोज निकाला गया। |
जेरिको शहर (यरीहो) के पतन की कहानी एक कल्पित कहानी है। इस शहर का कभी कोई अस्तित्व नहीं था। | यरीहो शहर मिला और उसकी खुदाई हुई। यह मालूम पड़ा कि इस शहर की दीवारें उसी तरह ढही हुई पायी गईं, जैसे बाइबल में उनका विवरण दिया गया है। |
‘हित्तियों’ का कोई अस्तित्व नहीं था। | इस अद्भुत हित्ती सभ्यता के बारे में अनेक संदर्भ पाए गए हैं। और अमरीका के शिकागो विश्वविद्यालय में हित्ती अध्ययन के लिए डॉक्टर की उपाधि भी मिलती है। |
बेलशस्सर, बेबीलोन (बाबेल) का वास्तविक राजा नहीं था; उसका कोई रेकॉर्ड (अभिलेख) नहीं है। | बेबीलोन (बाबेल) के तख्ते नेबोनिडस के पुत्र बेलशस्सर, और उसके सह-शासनकाल का वर्णन करते हैं। |
कुछ लोगों का यह मानना है कि बाइबल का अनुवाद “बहुत बार हुआ है” इसलिए वह अनुवाद के स्तरों के दौरान दूषित हो गई है। यदि अनुवाद दूसरे अनुवादों से हुआ हो तो ऐसा संभव है। परंतु, पवित्र बाइबल के सभी अनुवाद सीधे उनके मूल स्त्रोत - यूनानी, यहूदी, इब्रानी भाषाओं से हुए हैं, जो हजारों प्राचीन पांडुलिपियों पर आधारित है।
पवित्र बाइबल में ‘पुराना नियम’ (ओल्ड टेस्टमेंट) की यथार्थता की पुष्टि 1947 में हुई जब पुरातत्व खोज द्वारा “द डेड सी स्क्रोल्स” (The Dead Sea Scrolls) आज के इस्राएल के पश्चिमी तट पर पाए गए। “द डेड सी स्क्रोल्स” में ‘पुराने नियम’ शास्त्र मिले जो कि किसी भी खोजी गयी पांडुलिपि से 1,000 साल पुराने हैं। जो पांडुलिपियाँ हमारे पास हैं, उनकी तुलना जब हम इन, जो 1,000 साल पहले की हैं, करते हैं तो देखते हैं कि दोनों 99.5% मेल खाती हैं। 5% का जो अंतर है वह छोटे वर्तनी अंतर और वाक्यों की बनावट के कारण है, पर उससे वाक्यों के अर्थ में कोई अंतर नहीँ पड़ा है।
और पवित्र बाइबल का ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट), मानवता का सबसे प्राचीन एवं विश्वसनीय लेख है।
सभी प्राचीन पांडुलिपियां, ‘पपायरस’ (उक्त पौधे डंठलों से प्राचीन मिस्त्रियों द्वारा बनाया हुआ कागज़) पर लिखी जाती थीं, जिनको अधिक दिनों तक संभाल कर रखना सम्भवत नहीं था। इसलिए लोगों ने इनकी हाथों से नकल की, ताकि इनमे दिए गए संदेश को बनाए रख सकें और दूसरों को इसे प्रसारित कर सकें।
बहुत कम लोग हैं जो की यह संदेह करते है की ‘प्लेटो’ के द्वारा लिखित “द रिपब्लिक” का अस्तित्व है। यह एक क्लासिक (पराचीन उच्च शस्त्र) है, जो प्लेटो ने लगभग 380 बी.सी. में लिखा था (‘द रिपब्लिक’, प्लेटो की रचना है जिसमें ‘सुकरात’ (सॉक्रटीज़) के विचार वर्णित हैं )। इसकी सबसे पुरानी प्रतियां, 900 ए.डी. (ईसा पश्चात्) की हैं। इसका मतलब यह है की प्लेटो द्वारा इसे लिखे जाने वाले समय, और इसकी प्रतियाँ पाए जाने के समय में लगभग 1300 साल के समय का अंतराल है। और, इस समय अस्तित्व में इसकी केवल सात प्रतियां हैं। सीज़र के "गैलिक वॉर्स" लगभग 100-44 बी.सी. में लिखे गए थे। आज जो प्रतियां हमारे पास हैं, उनमें तिथि उसके लिखे जाने के 1000 साल बाद की दी गई हैं। हमारे पास इसकी दस प्रतियां हैं।
जब हम ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) को देखते हैं, जिसको कि 50-100 ए.डी. के बीच में लिखा गया, हमारे पास इसकी पाँच हजार से अधिक प्रतियाँ हैं। इन सभी की तिथि, मूल लेख के बहुत समीप है (50 से 225 सालों के बीच)। इसके अलावा, पवित्र शास्त्र के लेखक (महंत), मूल पांडुलिपियों की प्रतिलिपि में सूक्ष्म (अति सतर्क) थे। वे अपने कार्य को जाँच करते, और दुबारा से फिर जाँचते थे, ताकि वे सुनिश्चित कर सकें की उनका कार्य बिलकुल मिलान करे। मूल रूप से लिखा गया ‘नया नियम’, किसी भी अन्य प्राचीन पांडुलिपि से बेहतर संरक्षित है। इसलिए, हम यीशु की ज़िंदगी के बारे में जो कुछ पढ़ते हैं, उसके बारे में अधिक निश्चित हो सकते हैं, प्लेटो, सीज़र, ऐरिस्टॉटल और होमर से ज़्यादा।
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‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की दूसरे प्राचीन लेखों से एक तुलना ---
यहाँ देखिए किस तरह ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की एक तुलना दूसरे प्राचीन लेखों से होती है *
लेखक | किताब | लिखित दिनांक |
पाई गयीँ प्रतिया (लगभग) |
समय का अंतराल (लगभग) |
प्रतियों की संख्या |
होमर | इलियद | 800 बी.सी. | 400 बी.सी. | 400 वर्ष | 643 |
हेरोडोटस | इतिहास | 480-425 बी.सी. | ए.डी.900 | 1350 वर्ष | 8 |
थूसीडीडेस | इतिहास | 460-400 बी.सी. | ए.डी.900 | 1300 वर्ष | 8 |
प्लेटो | 400 बी.सी. | ए.डी.900 | 1300 वर्ष | 7 | |
डेमोस्थेनस | 300 बी.सी. | ए.डी.1100 | 1400 वर्ष | 200 | |
सीजर | गैलिक वॉर्स | 100-44 बी.सी. | ए.डी.900 | 1000 वर्ष | 10 |
टेसिटस | ऐनल्स | .ए.डी.100 | ए.डी.1100 | 1000 वर्ष | 20 |
प्लीनी सिकनडस |
प्राकृतिक इतिहास |
.ए.डी.61-113 | ए.डी.850 | 750 वर्ष | 7 |
‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) | .ए.डी.50-100 | ए.डी. 114 (कुछ अंश) ए.डी. 200 (किताबें) ए.डी. 325 (पूर्ण ‘नया नियम’) |
+50 वर्ष 100 वर्ष 225 वर्ष |
5366 |
*जोश मैक्डोवेल की किताब, “द न्यू इविडेन्स दैट डिमान्ड्स ए वरडिक्ट”(थॉमस नेलसन पब्लिशर्स, 1999), पृष्ठ 55.
‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) के चार लेखकों ने यीशु मसीह के जीवन पर अपनी जीवनी लिखी है। इन्हें, चार सुसमाचार कहा जाता है - ‘नया नियम’ की पहली चार किताबें। जब इतिहासकार यह निर्धारित करने का प्रयास करते हैं कि एक जीवनी विश्वसनीय है या नहीं, वे यह पूछते हैं, “कितने अन्य स्रोत इस व्यक्ति के बारे में समान विवरण की रिपोर्ट करते हैं?”
सब इतिहासकार इसी तरह काम करते हैं। कल्पना कीजिए, आप अमरीका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति ‘जॉन एफ कैनेडी’ के बारे में जीवनी एकत्रित कर रहे हैं। आप पाएँगे कि बहुत सारी जीवनियाँ लिखी गयी हैं - उनके परिवार के बारे में, उनके राष्ट्रपति होने के समय के बारे में, उनके चाँद पर एक आदमी भेजने के लक्ष्य के बारे में, उनके ‘क्यूबा’ राज्य की ‘आपातकाल मिसाइल स्थिति’ को सुलझाने, आदि, के बारे में। क्या यीशु के बारे में हम अनेक जीवनियाँ पाते हैं, जहाँ सब में उनके जीवन के बारे में समान तथ्यों को रिपोर्ट करा गया हो? जी हाँ!!
यहाँ, यीशु के बारे में तथ्यों का एक नमूना है, और कहाँ आप हर जीवनी में उस तथ्य की जानकारी प्राप्त करेंगे।
मत्ती | मरकुस | लूका | यूहन्ना | |
यीशु एक कुँवारी से पैदा हुए | 1:18-25 | - | 1:27, 34 | - |
वह बेथलहेम मे पैदा हुए | 2:1 | - | 2:4 | - |
वह नासरत में रहते थे | 2:23 | 1:9, 24 | 2:51, 4:16 | 1:45, 46 |
यीशु को यूहन्ना बपतिसमा देने वाले द्वारा बपतिसमा दिया गया | 3:1-15 | 1:4-9 | 3:1-22 | - |
उन्होंने लोगों को चंगा करने के चमत्कार दिखाए | 4:24, etc. | 1:34, etc. | 4:40, etc. | 9:7 |
वह पानी पर चले | 14:25 | 6:48 | - | 6:19 |
उन्होंने 5 रोटियों और 2 मछलियों से 5 हजार लोगों को खाना खिलाया |
14:7 | 6:38 | 9:13 | 6:9 |
यीशु ने आम आदमियों को शिक्षा दी | 5:1 | 4:25, 7:28 | 9:11 | 18:20 |
समाज के उपेक्षित लोगों के साथ समय बिताया | 9:10, 21:31 | 2:15, 16 | 5:29, 7:29 | 8:3 |
उन्होंने धार्मिक अभिजात वर्ग के साथ तर्क किया | 15:7 | 7:6 | 12:56 | 8:1-58 |
धार्मिक अभिजात वर्ग ने उन्हें मारने का षड्यंत्र किया | 12:14 | 3:6 | 19:47 | 11:45-57 |
उन्होंने यीशु को रोमवासियों के हवाले कर दिया | 27:1, 2 | 15:1 | 23:1 | 18:28 |
यीशु को कोड़े मारे गए | 27:26 | 15:15 | - | 19:1 |
उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया गया | 27:26-50 | 15:22-37 | 23:33-46 | 19:16-30 |
उन्हें गाड़ा गया | 27:57-61 | 15:43-47 | 23:50-55 | 19:38-42 |
यीशु मरकर फिर से जीवित हुए और अपने अनुयायियों को दिखायी दिए |
28:1-20 | 16:1-20 | 24:1-53 | 20:1-31 |
दो सुसमाचार जीवनियाँ, प्रेरित मत्ती और यूहन्ना ने लिखी हैं - दो व्यक्ति जो यीशु मसीह को व्यक्तिगत रूप से जानते थे और जिनके साथ उन्होंने तीन साल तक हर जगह यात्रा करी। दूसरी दो किताबें मरकुस और लूका ने लिखी हैं, जो बाकी प्रेरितों के करीबी सहयोगी थे। इन लेखकों ने सब कुछ अपनी आँखों से देखा और उसका अभिलेख किया। उनके इस लेखन के दौरान, कई लोग जीवित थे जिन्होंने यीशु को बोलते हुए सुना, रोगियों को चंगा होते देखा और उन्हें अनेक चमत्कार करते हुए देखा।
आरंभिक गिरजाघरों (चर्च) ने इन चारों सुसमाचारों को आसानी से स्वीकार किया क्योंकि यीशु के जीवन की ये जानकारी आम जानकारी थी। इसके अलावा, मत्ती, मरकुस, लुका और यूहन्ना रचित सुसमाचार, एक समाचार रिपोर्ट की तरह हैं। लेख के प्रत्येक विवरण उनके लेखक के दृष्टिकोण से लिखा गया है, पर सभी तथ्य मेल खाते हैं।
किसी एक सुसमाचार के नमूने को देखने के लिए, यहाँ क्लिक कीजिए
सुसमाचार में क्या प्रस्तुत है, उसका एक नमूना ---
सुसमाचारों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया गया है- “यह इसी तरह से था। ” यहां तक कि यीशु मसीह के चमत्कारों को भी बिना किसी सनसनिवाद या रहस्यवाद से लिखा गया है। उसका ठेठ उदाहरण लूका रचित सुसमाचार, अध्याय 8 में है, जहाँ यीशु एक छोटी लड़की को उसके मरने के बाद जीवित करते हैं। इस समाचार लेखन के विवरण और स्पष्टता पर ध्यान दीजिए:
“इतने में याईर नामक एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया और यीशु के पाँवों पर गिर के उससे विनती करने लगा कि मेरे घर चल, क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी।
जब वह (यीशु) जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे। एक स्त्री ने, जिस को बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी, तौभी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया। इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किसने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।” परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है, क्योंकि मैं ने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकला है।” जब स्त्री ने देखा कि वह छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया कि उसने किस कारण से उसे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई। उसने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।”
वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दु:ख न दे।” यीशु ने यह सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख, तो वह बच जाएगी।” घर में आकर उसने पतरस, यूहन्ना, याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़, अन्य किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया। सब उसके लिए रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।” यह जानते हुए कि वह मर गई है, वे उसपर हँसने लगे। परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की, उठ!” तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठ बैठी। फिर उसने आज्ञा दी कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चिताया कि यह जो हुआ है किसी से न कहना।
यीशु मसीह के दूसरे खातों की तरह, लोगों को चंगा करने के इस खाते में भी सच्चाई (सत्यता) है। अगर यह एक काल्पनिक कहानी होती तो इसके कुछ अंश भिन्न प्रकार से लिखे गए होते। जैसे की, एक काल्पनिक कहानी के वर्णन में जब कुछ और हो रहा होता है तब कहीं कोई रुकावट नहीं होती है। अगर यह कल्पना होती, तो दु:ख में रोते हुए लोग यीशु के कथन पर हँसते नहीं; शायद गुस्सा होते, शायद दुखी होते, पर हँसते नहीं। और, काल्पनिक कहानी लिखते समय, क्या यीशु माता-पिता को इस विषय में चुप रहने को कहते? आप यह सोचते होंगे कि किसी को चंगा करना तो एक बहुत बड़ी बात बननी चाहिए। पर वास्तविक जीवन हमेशा इतना आसान नहीं होता है। बीच में रुकावटें आती हैं। लोगों की प्रतिक्रिया अजीब होती है। माता-पिता को इस समाचार को फैलाने से रोकने के यीशु मसीह के अपने कारण थे।
सुसमाचारों की प्रामाणता को जानने का एक सर्वश्रेष्ट परीक्षण, उसे स्वयं पढ़ना है। पढ़ने पर, क्या वह वास्तविक घटनाओं की रिपोर्ट लगते हैं, या काल्पनिक कहानी जैसे लगते हैं? यदि यह वास्तविक है, तो परमेश्वर ने अपने आप को हमारे सामने प्रकट किया है। यीशु मसीह धरती पर आए आए, यहाँ रहे, लोगों को सिखाया, प्रेरणा दी, और करोड़ों को नया जीवन दिया, उनको जो आज उनके शब्द और जीवन के बारे में पढ़ते हैं। जो कुछ यीशु ने सुसमाचारों में बताया है, बहुत लोगों ने इनको विश्वसनीय और सच पाया है: “मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।” (यूहन्ना 10:10)
यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान (फिर से जी उठने) के कुछ समय बाद, सुसमाचार खाते लिखने की कोई स्पष्ट आवश्यकता महसूस नहीं की गयी थी। उसका मुख्य कारण यह था कि यरूशलम में रहने वाले लोग, यीशु मसीह के साक्षी थे और उसकी सेवा के बारे में जानते थे।6 अतः सुसमाचार मुँह के वचन के द्वारा फैल रहा था।
परंतु, जब यीशु मसीह के बारे में समाचार यरूशलेम से बाहर फैलने लगे, और उनके साक्षियों को ढूँढ़ना इतना सरल नहीं रहा, तब लिखित खातों की जरूरत महसूस होने लगी, ताकि दूसरों को यीशु के जीवन और उनकी सेवा के बारे में अवगत कराया जा सके।
अगर आप यीशु के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, यह लेख उनके जीवन का सारांश बताएगा: आँख मूँद कर भरोसा करने से अलग
जैसे ही ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की किताबों को लिखा गया, प्रारंभिक चर्च (गिरजाघर) ने इनको स्वीकार किया। यह पहले से ही ऊपर वर्णित किया गया है कि इनके कुछ लेखक या तो यीशु मसीह के मित्र थे या उनके नजदीकी अनुयायी थे। वे वैसे आदमी थे जिन्हें यीशु ने प्रारम्भिक चर्च के नेतृत्व का भार सौंपा था। सुसमाचारों के दो लेखक, मत्ती और यूहन्ना, यीशु के सबसे घनिष्ट अनुयायीयों में से थे। मरकुस और लुका, प्रेरितों के साथी थे, जिस कारण उन्हें यीशु के जीवन के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान था।
‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) के अन्य लेखकों के पास भी यीशु मसीह तक पहुँच थी। याकूब और यहूदा, यीशु के सौतेले भाई थे, जो आरम्भ में उनपर विश्वास नहीं करते थे। पतरस, 12 प्रेरितों में से एक था। शुरू में पौलुस ईसाई धर्म का हिंसक प्रतिद्वंदी था और धार्मिक सत्तारूढ़ का एक सदस्य था, परंतु जल्द ही वह यीशु का एक उत्साही अनुयायी बन गया, इस बात से आश्वस्त हो कर कि यीशु मसीह मर कर पुनर्जीवित हुए।
‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की किताबों में लिखी गई रिपोर्ट उन बातों से मेल खाती थीं जिसके हजारों लोग चश्मदीद गवाह थे।
कई सौ सालों बाद, जब दूसरी किताबें लिखी गईं, तब चर्च के लिए उन्हें जालसाज़ी/नक़ली होने के रूप में पकड़ने में मुश्किल नहीं हुई। उदाहरण स्वरूप, ‘यहूदा द्वारा रचित सुसमाचार’ ‘नोस्टिक (रहस्यवादी) संप्रदाय’ के द्वारा, करीब 130-170 ए.डी में, यहूदा की मृत्यु के बहुत समय बाद लिखा गया था। ‘थॉमस द्वारा रचित सुसमाचार’, करीब 140 ए.डी. में लिखा गया, जो कि एक जाली/नक़ली लेख का एक और उदाहरण है, जो इस प्रेरित के नाम में किखा गया। इन, और अन्य ‘नोस्टिक’ ग्रंथों में यीशु मसीह और ‘पुराने शास्त्र’ (टेस्टामेंट) की ज्ञात शिक्षाओं के बीच विरोधाभास है, और अक्सर अनेक ऐतिहासिक और भौगोलिक गलतियाँ भी दिखाई दीं।7
367 ए.डी. में, सिकंदरिया के अथेन्सियस ने औपचारिक रूप से, ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की 27 किताबें सूचीबद्ध कीं (वही सूची जो आज भी मान्य है)। इसके तुरंत बाद, जेरोम और संत ऑगस्टीन ने यही सूची परिचालित की। हालांकि ये सूचियाँ, अधिकांश ईसाइयों के लिए आवश्यक नहीं थीं। कुल मिलाकर, मसीह के बाद पहली सदी के पूरे चर्च ने इन किताबों की इसी सूची को स्वीकारा और इसका प्रयोग किया।
जैसे–जैसे चर्च, यूनानी भाषा बोलनेवाले प्रांतों से बाहर बढ़ता गया, और पवित्र शास्त्र के अनुवाद की आवश्यकता महसूस होने लगी, वैसे-वैसे अलग हुए छोटे दल अपनी प्रतिस्पर्धात्मक पवित्र ग्रंथें लेकर उभरना जारी रहे। तब यह आवश्यक हो गया कि पुस्तकों की एक निश्चित सूची हो।
इतिहासकार निश्चित रूप से उसकी पुष्टि करते हैं।
हमारे पास ना केवल मूल पांडुलिपियों की अच्छी तरह से संरक्षित प्रतियां हैं, इसके अलावा दोनों, यहूदी और रोमन, इतिहासकारों की गवाही भी है।
बाइबल में सुसमाचार, नासरत के यीशु के द्वारा किए गए चमत्कारों, रोमियों के द्वारा उन्हें क्रूस पर चढ़ाए जाने का, और उनके पुनरुत्थान (मरे हुओं में से जी उठने) का विवरण देतें हैं। कई प्राचीन इतिहासकारों ने यीशु और उसके अनुयायियों के जीवन के बारे में बाइबल में वर्णन की पुष्टि की है:
‘कॉर्नेलियस टेसिटस’ (ए.डी. 55-120), रोम के प्रथम शताब्दी के इतिहासकार, को पुरातन विश्व का एक सटीक/शुद्ध इतिहासकार माना जाता है।8 टेसिटस का एक अंश यह बताता है कि रोम के सम्राट नीरो ने “ईसाई कहे जानेवाले वर्ग पर उत्तम किस्म के अत्याचार द्वारा चोट पहुँचाई।…क्रिस्टस [क्राइस्ट], जिससे इस नाम की उत्पत्ति हुई, टाइबेरियस के शासनकाल में, हमारे एक पैरवी करनेवाले ‘पुन्तियुस पिलातुस’ के हाथों अत्याधिक दण्ड का सामना करना पड़ा….”9
फ्लेवियस जोसेफस, एक यहूदी इतिहासकार (ए.डी. 38-100), ने अपने ‘यहूदी पुरावशेषों’ में यीशु मसीह के बारे में लिखा। जोसेफस से हमें “पता चलता है कि यीशु मसीह एक ज्ञानी थे, जिन्होंने आश्चर्यजनक कार्य किए, बहुतों को सिखाया, यहूदी और यूनानियों में से बहुत सारे अनुयायी बनाए, उन्हें मसीहा माना गया, यहूदी नेताओं के द्वारा उनपर आरोप लगाए गए, पिलातुस द्वारा उनको क्रूस पर चढ़ाया गया, और यह माना गया कि उनका पुनरुत्थान हुआ।”10
सूटोनियस, युवा प्लिनी, और थैलस ने भी ईसाइयों की आराधना और उन पर अत्याचारों के बारे में जो लिखा है वह ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) के खातों के अनुरूप है।
यहाँ तक कि यहूदी तल्मूड, जो निश्चित रूप से यीशु मसीह के प्रति पक्षपाती नहीं है, उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं से सहमत है। तल्मूड में लिखा है, “हमें पता चला है कि यीशु मसीह वैवाहिक रिश्ते के बाहर पैदा हुए, चेलों को जमा किया, अपने विषय में धर्मद्रोहि दावे किए, और चमत्कार दिखाए, पर इन चमत्कारों को वे जादू टोना मानते हैं, परमेश्वर की ओर से नहीं।11
यह एक उल्लेखनीय जानकारी है, यह जानते हुए कि अधिकांश प्राचीन इतिहासकार राजनीति और सैन्य नेताओं पर ध्यान केंद्रित करते थे, न कि रोमन साम्राज्य के दूरस्थ प्रांतों के अव्यक्त रबियों के लिए। फिर भी, प्राचीन इतिहासकार (यहूदी, यूनानी और रोमन) ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) की प्रमुख घटनाओं की पुष्टि करते हैं, हालांकि वे खुद उसपर विश्वास नहीं करते हैं।
जी हाँ। विश्वास का वास्तव में कोई भी महत्व होने के लिए, उसका यथार्थता और तथ्यों पर आधारित होना जरूरी है। क्यों? उस का उत्तर यहाँ है। अगर आप लंदन के लिए उड़ान ले रहे हैं, तो आपको विश्वास रखना होगा कि उसमें आवश्यकता के अनुसार ईंधन है, उसका यंत्र सही है, उसका विमानचालक प्रशिक्षित है, और विमान पर कोई आतंकवादी नहीं है। हालाँकि, वह आपका विश्वास नहीं है जो आपको लंदन ले जा रहा है। आपका विश्वास केवल आपको हवाई जहाज में चढ़ाने में उपयोगी है। आपको वास्तव में जो लंदन ले जा रहा है, वह है विमान, विमानचालक, आदि की सत्यनिष्ठता। भूतकाल में हुई उड़ानों के सकारात्मक अनुभव के आधार पर आप उन पर भरोसा कर सकते हैं। पर आपका सकारात्मक अनुभव विमान को लंदन ले जाने के लिए काफी नहीं है। जो मायने रखता है, वह यह है- आपके विश्वास की वस्तु –- क्या वह विश्वसनीय है ?
क्या ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) यीशु का सटीक, विश्वसनीय प्रस्तुति है? जी हाँ। हम ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) पर विश्वास कर सकते हैं, क्योंकि इसे भारी तथ्यात्मक समर्थन प्राप्त है। इस लेख ने निम्नांकित अंकों को छुआ है:- इतिहासकारों का एकमत होना, पुरातत्व शास्त्र का एकमत होना, चारों सुसमाचार जीवनियों का सहमत होना, दस्तावेजों का उल्लेखनीय परिरक्षण, अनुवाद में बेहतर सटीकता। ये सब बातें हमें यह विश्वास करने के लिए एक ठोस नींव देती हैं, की जो कुछ भी हम आज पढ़ते हैं, वह वास्तविक जगहों में, वास्तविक लेखकों ने लिखा और अनुभव किया है।।
संक्षिप्त में, यूहन्ना, इन लेखकों में से एक इस प्रकार लिखता है, “यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए; परन्तु जो इसमें लिखे गए है, इसलिये लिखे गए हैं कि आप विश्वास करें कि यीशु ही मसीह है, परमेश्वर का पुत्र, ताकि विश्वास करके उसके नाम से आप जीवन पाएँ॥”12
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फुटनोट: (1) स्ट्रोबेल, ली। ‘द केस फॉर क्राइस्ट’ (जोन्डरवन पब्लिशंग हाउस, 1998), पृष्ठ 132. (2) सुप्रसिद्ध यहूदी पुरातत्ववेत्ता, नेलसन ग्लूएक, लिखते हैं, “निःसंदेह यह वर्णित किया गया है किसी भी पुरातत्व शास्त्र की खोज ने कभी भी किसी बाइबल के संदर्भ का प्रतिवाद नहीं किया।” मैक्डोवेल, जोश. (3) स्ट्रोबेल, पृष्ठ 143-144. (4) गिस्लर, नॉर्मन एल बेकर ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ क्रिस्टियन अपोलोजेटिक्स’ (ग्रैण्ड रैपिड्स: बेकर, 1998). (5) मैक्डोवेल, जोश ‘एविडेन्स दैट डिमान्ड्स ए वर्डिक्ट’ (1972), पृष्ठ 19. (6) देखिए प्रेरितों के काम 2:22, 3:13, 4:13, 5:30, 5:42, 6:14 आदि. (7) ब्रूस, एफ. एफ. ‘द बुक्स एण्ड द पार्चमेन्ट्स: हाउ वी गॉट आवर इंगलिश बाइबल’ (फ्लेमिंग एच. रेवेल कंपनी, 1950), पृष्ठ 113. (8) मैक्डोवेल, जोश द न्यू इविडेन्स दैट डिमान्ड्स ए वरडिक्ट (थॉमस नेलसन पब्लिशर्स, 1999), पृष्ठ 55. (9) टेसिटस, ए.15.44. (10) विल्किन्स, माइकेल जे. एण्ड मोरलैण्ड, जे .पी. ‘जीसस अंडर फायर’ (जोन्डरवन पब्लिशंग हाउस, 1995), पृष्ठ 40. (11) इबिद. (12) यहुन्ना 20:30,31