यह प्रत्येक उसके लिए एक अत्यन्त ही सम्माननीय प्रस्तुतिकरण है जो यीशु के बारे में अधिक जानकारी पाना चाहता है। कोई चुनौती नहीं दी गई है। और यहाँ पर किसी भी धर्म की आलोचना, किसी भी तरह से नहीं की गई है।
इस लेख में नीचे इन छ: प्रश्नों का उत्तर दिया गया है:
एक परिचय के रूप में, यहाँ पर कुछ कथन दिए गए हैं जो बाइबल में पाए जाते हैं:“जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।”1
परमेश्वर का वचन लोप नहीं होगा। अपने अनन्तकाल से अन्त तक इसमें दी हुई सभी बातें पूरी होंगी। एक बार फिर से यह ऐसे कहता है कि, “आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।”2
साथ ही यह भी, “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिये लाभदायक है।”3 सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।
और, “घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।”4
हमें स्वयं से ही पूछने की आवश्यकता है कि, “क्या परमेश्वर अपने वचन की सुरक्षा करने में सक्षम है।” क्या परमेश्वर इन कथनों को पूरा करने में सक्षम है कि उसका वचन कभी भी लोप न होगा, और पूरा होकर ही रहेगा।”?
क्या परमेश्वर सक्षम है? हाँ, वह बिल्कुल है। परमेश्वर का यह वचन सभी लोगों के लिए है। क्या हम ऐसा कहने के द्वारा स्वयं परमेश्वर के ऊपर आरोप लगा रहे हैं कि वह उसके मूल रूप से परिवर्तित होने में रोकने के लिए सक्षम नहीं था?
कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है। यह केवल एक अफवाह है।
कुरान नहीं कहती है कि बाइबल परिवर्तित हो गई। और ठीक इसके विपरीत है। यह तोराह और बाइबल का सम्मान करती है। यह तोराह, और “ज़बूर” (पुराना नियम और भजन संहिता) और “इंजील” (नया नियम) का कई बार उल्लेख करती है।
जब इस्लाम का उदय 6वीं सदी में हुआ, यीशु मसीह के 600 वर्षों पश्चात्, तब बाइबल को सत्य के रूप में मान लिया गया था।
इसलिए, आप यह पूछ सकते हैं कि, क्या बाइबल 6वीं सदी से परिवर्तित अर्थात् बदल गई है? नहीं, ऐसा नहीं है। आप जो कुछ करना है वह यह कि आज की बाइबल की तुलना बहुत पहले लिखी हुई बाइबल से करनी है।
आपको 300 ईसा पूर्व लिखी हुई, पूरी बाइबलों की प्रति मिल जाएगी, जो कि कुरान के लिखे जाने से हजारों साल पहले लिखी गई थी। आप इसकी प्रति को लंदन के संग्रहालय, वेटीकन और कई अन्य स्थानों में पा सकते हैं। यदि आप आज की बाइबल की तुलना 300 ईसा पूर्व में लिखी हुई बाइबलों के साथ करें, तो आप पाएंगे कि हमारी आज की बाइबल ठीक वही बाइबल है।
क्या आप जानते हैं कि आज नए नियम के अंशों की लगभग 25,000 हस्त-लिखित प्रतियाँ अस्तित्व में हैं? इतिहासकारों ने इन पाण्डुलिपियों की तुलना करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला है कि आज का नया नियम अपने मूल रूप से कम से कम 99.5% निकट है। इसमें कोई भी बदलाव नहीं आया है।
(बाकी का 5%वर्तनी की गल्तियों को सूचित करता है, परन्तु इसके अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं आया है।)
इसके साथ, आपको अभी हाल ही में मृतक सागर से पाए जाने वाले पुरातात्विक कुण्डल पत्रों की खोज की जानकारी होगी। यह कुमरान की गुफाओं में, मृतक सागर के उत्तर-पश्चिमी कोने से ठीक थोड़ी दूरी पर पाए गए हैं।
शोधकर्ताओं ने आज की हमारी बाइबल की तुलना जो कुछ खोज में पाया गया है उससे की है, और वे अपने उच्च स्तर में एक जैसे ही, लगभग 100% एक दूसरे के समान हैं।
कोई आपसे यह नहीं कहे कि नया नियम या बाइबल अपने मूल रूप से परिवर्तित हो गई है। यह सामान्यतया ऐतिहासिक रूप से सटीक नहीं है।
बाइबल में कभी भी कोई बदलाव नहीं आया है।
ठीक है, परन्तु अब चार सुसमाचारों अर्थात् इंजीलों के बारे में क्या कहा जाए? क्या यह भिन्न पवित्रशास्त्र नहीं है, क्या यह एक दूसरे से भिन्न नहीं है?
हाँ, चार सुसमाचार हैं: मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना नए नियम में पाए जाते हैं। यह वास्तव में हमें यह दिखाने में सहायता करते हैं कि कैसे बाइबल कभी झूठी नहीं हुई है। यीशु ने जो कुछ कहा, और यीशु ने जो कुछ किया के बारे में यह चार गवाह हैं, यीशु के जीवन के चार वृतान्त हैं।
कल्पना करें कि, यदि एक या दो, या यूँ कहिए कि चार लोगों ने, सड़क के किनारे घटित हुई एक कार दुर्घटना को देखा है। और प्रत्येक को अपने दृष्टिकोण को लिखने को कहा जाता है, न्यायालय में उन्हें दुर्घटना की गवाही लिखने के लिए कहा जाता है। क्या आप सोचते हैं कि चारों ठीक एक जैसा ही विवरण, ठीक एक जैसी ही गवाही, शब्द-दर-शब्द देंगे? स्पष्ट है कि नहीं।उनमें से प्रत्येक जो कुछ उसने देखा उसके अपने ही दृष्टिकोण से लिखेगा। और यही कुछ यीशु के वृतान्त को लिखते समय, यीशु के प्रत्यक्षदर्शी के रूप में इनमें से प्रत्येक के साथ घटित हुआ।
सदियों से न्यायिक प्रणाली में प्रत्यक्षदर्शियों या गवाहों को सम्मिलित किया जाता रहा है। और, अत्यन्त आवश्यक विषयों में, दूसरे व्यक्ति के विरूद्ध में एक ही व्यक्ति की गवाही पर्याप्त नहीं मानी जाती है। अक्सर, हमें एक से ज्यादा गवाहों की आवश्यकता होती है। यहाँ नए नियम में एक कथन पाया जाता है जिसे पुराने नियम में से उद्धृत किया गया है, “दो या तीन गवाहों के मुँह से हर एक बात ठहराई जाएगी।”5
केवल चार ही गवाह नहीं हैं जिन्होंने यीशु के बारे में सुसमाचारों को लिखा है, अपितु कई और भी गवाह हैं। याकूब, पौलुस, यहूदा, पतरस और कई अन्यों ने नए नियम की बाकी की पुस्तकों को लिखा है।
यूहन्ना ने कहा, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ [के बारे में लिखते हैं]।”6 उन्होंने यीशु को अपनी आँखों से देखा था। इसलिए जो कुछ उन्होंने देखा उसे लिख दिया।
उन सभी भाषाओं, सभी अनुवादों के बारे में क्या कहा जाए जिनमें बाइबल लिखी गई है?
बाइबल इब्रानी और यूनानी भाषा में लिखी गई थी। कोई भी बाइबल, चाहे वह किसी भी वर्ष में क्यों न छापी गई हो, सदा ही इब्रानी और यूनानी भाषाओं के मूल रूप का अनुवाद रही है। (उदाहरण के लिए, बाइबल का अनुवाद कभी भी अंग्रेजी से अंग्रेजी में नहीं किया गया है। उन्होंने सदैव इसका आरम्भ मूलपाठ से किया है।)
कुछ ऐसी बाइबलें पाई जाती हैं जो अनुवाद न हो कर विस्तारवर्धक हैं। और उनकी पहचान विस्तारवर्धक रूप में ही होती है। परन्तु फिर भी, उनका अनुवाद ठीक वैसे ही अनुवाद है – जैसे कि मूल इब्रानी और यूनानी पाठ का अनुवाद कहता है।
बाइबल के इब्रानी और यूनानी लेखों का अनुवाद हज़ारों भाषाओं में किया गया है। ऐसा क्यों है? क्योंकि परमेश्वर चाहता है कि इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति उद्धार के शुभ सन्देश को जान ले।
और बाइबल को अनुवाद करना कठिन नहीं है। बाइबल में ऐसे अंश पाए जाते हैं जो काव्य रूप (नीतिवचन, श्रेष्ठगीत, भजन संहिता) में है। परन्तु बाइबल की भाषा का केन्द्र स्वयं में बहुत ही सरल है जो हमारे प्रतिदिन के जीवन के विषयों का निपटारा करती है। इसका अनुवाद करना कठिन नहीं है। सच्चाई तो यह है कि बाइबल एकदम सीधे शब्दों में बात करती है, बाइबल में भरोसा करना का एक और कारण इसके द्वारा दिया हुआ सरल वर्णन है।
यहाँ पर एक सच्ची कहानी दी गई है।
“मेरे पुत्र ने मुझे एक दिन बुलाया। वह किसी दूसरे देश में, एक बड़े राजमार्ग के मध्य में, एक दुर्घटना में पड़ा हुआ था। उसकी कार को किसी दूसरी कार ने टक्कर मार दी थी, और वह 180 डिग्री के अंश पर राजमार्ग के मध्य में उल्ट कर, उल्टी दिशा में गिर गया था।
उसने कहा, ‘पिता जी, मैं ठीक हूँ। परन्तु अब मैं क्या करूँ?’
वह तो परेशानी में था। उसे सहायता की आवश्यता थी। ठीक है, क्या आप सोचते हैं कि यह ऐसा समय है जब मैं उसे एक काव्यात्मक सन्देश भेजूँ? एक कविता जिसे मैंने स्मरण किया हुआ है? नहीं यह ठीक नहीं है।
यह ऐसा समय था जब मैं बस उससे यह कहूँ कि, ‘जॉन, तुम्हें यह करना चाहिए। तुम एक बड़ी परेशानी में फँस गए हो और अब तुम्हें इससे बाहर निकलना चाहिए।’ और वास्तव में यही है बाइबल का मुख्य विषय। मानवता परेशानी में पड़ी हुई, नरक की ओर बढ़ रही है। क्योंकि सबने पाप किया है और सब परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। हम सभों को उद्धार के एक साधारण से सन्देश की आवश्यकता है। बाइबल हमें बताती है कि हम क्षमा कर दिए जा सकते हैं, कैसे हम परमेश्वर के साथ सम्बन्ध में लाए जा सकते हैं जो अब आरम्भ होता है और अनन्तकाल तक बना रहता है। यह एक ऐसा सन्देश है जो हमारे जीवनों को परिवर्तित कर देता है।
क्या परमेश्वर की यह ठाना है कि हम यहूदी धर्म से आरम्भ करके, तब ईसाईयत में आ जाए, इसके पश्चात् इस्लाम में चले जाएँ?
नहीं ऐसा नहीं है। परमेश्वर चिरस्थाई है। उसने कभी भी धर्म के निर्माण करने में रूची नहीं ली है।
अब्राहम के साथ आरम्भ करते हुए, परमेश्वर हम पर स्वयं के बारे में प्रकाशित करने में स्पष्ट है ताकि हम उसके साथ सम्बन्ध में आ सकें। एक सम्बन्ध, एक धर्म नहीं, हमारी रचना के लिए परमेश्वर का अन्तिम उद्देश्य है।
आइए आदम और हव्वा के साथ आरम्भ को देखें. उनका परमेश्वर के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध था और उनकी सभी आवश्यकताएँ पूरी होती थी।
तब शैतान आदम और हव्वा के सामने एक सर्प के रूप में प्रगट हुआ, और उन्हें परीक्षा में डाल दिया। दुर्भाग्य से, उन्होंने शैतान के ऊपर विश्वास करना चुना और जो कुछ परमेश्वर ने उन्हें कहा था उसकी अनाज्ञाकारिता की। परिणामस्वरूप, आदम और हव्वा परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध से दूर हो गए।
परन्तु क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर ने तुरन्त शैतान से क्या कहा?परमेश्वर ने कहा कि स्त्री की सन्तान शैतान की शत्रु होगी। परमेश्वर ने कहा कि सन्तान की एड़ी को डसने से, शैतान की आंशिक विजय होगी। परन्तु सन्तान अन्तिम प्रहार करते हुए, शैतान के सिर को कुचल देगा।
यहाँ पर वृतान्त दिया हुआ है:
“तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, ‘तू ने जो यह किया है इसलिये तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा। और मै तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”7
शैतान के पास स्त्री के वंश की एड़ी को डसने के कारण, अल्प-कालिक विजय होगी।
अभी तक के इतिहास में, कौन है ऐसा एकलौता व्यक्ति जो स्त्री से, पुरूष से नहीं, और केवल स्त्री से ही उत्पन्न हुआ है? यीशु, मरियम का पुत्र, ठीक है ना?
शैतान स्त्री की इस सन्तान की एड़ी को डसेगा। परन्तु यह सन्तान शैतान के सिर के ऊपर प्रहार करेगा। और सर्प को मारने का केवल एक ही तरीका है वह यह कि इसके सिर के ऊपर प्रहार किया जाए।
इसका क्या अर्थ है? इसके लिए केवल एक ही स्पष्टीकरण पाया जाता है।
शैतान ने क्रूस के ऊपर यीशु को प्रहार किया था, जब यीशु के हाथ और पाँव कीलों से जड़े हुए थे। परन्तु यीशु ने इस नष्ट करने वाले शैतान के प्रहार से छुटकारा पा लिया। क्रूस के ऊपर ही, यीशु शैतान के ऊपर विजयी हो गया। यीशु ने मानवजाति के पापों की कीमत को, प्रत्येक के लिए क्षमा प्रदान करते हुए अदा कर दी और परमेश्वर के पास वापस सम्बन्ध में आने के लिए एक मार्ग को बना दिया।
भविष्यद्वक्ता यशायाह ने इस सन्तान के बारे में ऐसे लिखा है:
“उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते। वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दु:खी पुरूष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी।
और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हम ने उसका मूल्य न जाना।
निश्चय उस ने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा- कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा।
परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं।
हम तो सब के सब भेड़ों की नाईं भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।”8
भविष्यद्वक्ता यशायाह किसके बारे में बात कर रहा है? यह एकदम से स्पष्ट है। वह यीशु के बारे में बात कर रहा है। और यह कब लिखा गया था? यीशु मसीह के आने से लगभग 600 वर्षों पहले लिखा गया था।
आरम्भ से ही, हज़ारों वर्षों के मध्य में, परमेश्वर ने सदैव यह कहा है कि यीशु आएगा और वह मारा जाएगा, ठीक वैसे ही जैसे हम यशायाह में पढ़ते हैं। आप परमेश्वर के बारे में क्या सोचते हैं, क्या अन्तिम क्षणों में, उसने अपने मन को बदल लिया था? उस समय क्या होता, यीशु के आने की प्रतिज्ञा के हज़ारों वर्षों पश्चात्, परमेश्वर अपने मन को बदल लेता और यीशु को हमारे लिए नहीं मरना पड़ता?परमेश्वर कभी भी अपने मन को नहीं बदलता है।
परमेश्वर आत्मा है। और यीशु, शारीरिक तरीके से नहीं अपितु आत्मिक भाव में परमेश्वर का एकलौता पुत्र है।
यदि कोई ऐसे कहता है, “तुम केदार के पुत्र हो” तो इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति लेबनान से है। या यदि कोई मिस्र से हो तो, “तुम नील नदी के पुत्र हो।” यह कहना कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है, का अर्थ यह है कि यीशु परमेश्वर की ओर से है। यह एक पदवी के जैसा है। जब स्वर्गदूत मरियम के साम्हने प्रगट हुआ था, तब स्वर्गदूत ने ऐसा कहा था, “वह पवित्र जो उत्पन्न होने वाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।”यह एक पदवी है। मसीही विश्वासी यह नहीं मानते हैं कि परमेश्वर का किसी स्त्री के साथ किसी तरह का शारीरिक सम्बन्ध बना था।
यशायाह यह कहता है, “क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम:अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।”9
वह परमेश्वर है, जो मरियम के द्वारा, एक व्यक्ति बन गया। वह परमेश्वर और पुत्र एक ही समय में है, जो कुवांरी मरियम से उत्पन्न हुआ।
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को कुंवारी मरियम से क्यों उत्पन्न होने दिया?
एक स्त्री से उत्पन्न होना, और एक पुरूष और स्त्री के सम्बन्ध से उत्पन्न न होने का अर्थ यह है कि उसने आदम और हव्वा के पापपूर्ण स्वभाव को अपने ऊपर नहीं लिया। जब आदम और हव्वा पाप में गिर गए, तब उन्होंने अपने पापी स्वभाव को एक से दूसरी पीढ़ी में, अपनी सन्तान के द्वारा, हमारी पीढ़ी तक स्थानान्तरित कर दिया।
हम पापी के रूप में ही उत्पन्न होते हैं। हम सब में परमेश्वर के तरीके की अपेक्षा हमारे स्वयं के तरीके से कार्यों को करने प्रवृत्ति पाई जाती है। हम सभी पाप करते हैं। इसलिये ही भविष्यद्वक्ता दाऊद पुकार उठा, “पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।” हम सभी पाप के साथ उत्पन्न हुए हैं। हम सभी पाप से भरे हुए लोगों की तरह जीवन व्यतीत करते हैं और हम सभों को एक छुटकारा देने वाले की आवश्यकता है।
हमें छुटकारा देने के लिए यीशु को, एक भिन्न स्वभाव की आवश्यकता थी। उसे परमेश्वर के आत्मा, पवित्र आत्मा की ओर से होने की आवश्यकता थी, जिसमें लेशमात्र भी पाप नहीं है। यशायाह ने कहा है, “उसमें किसी तरह का कोई छल नहीं पाया गया था।” उसमें किस तरह का कोई पाप नहीं था।
पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर ने जलती हुई झाड़ी का रूप धारण कर लिया था जब वह स्वयं को मूसा पर प्रगट कर रहा था। वह स्वर्ग की आवाज के रूप में बोला जब वह अब्राहम के साथ वार्तालाप कर रहा था। कौन यह कह सकता है कि परमेश्वर हम पर प्रगट करने के लिए स्वयं के लिए मनुष्य का रूप धारण नहीं कर सकता है?
किस तरह से परमेश्वर ने अब्राहम की जाँच की? उसने अब्राहम को कहा कि वह उसके पुत्र को वेदी के ऊपर डाल दे। जब वे पहाड़ के ऊपर जा रहे थे, तब उसके पुत्र ने उससे पूछा, “भेंट कहाँ पर है?” अब्राहम ने उत्तर दिया था, “परमेश्वर आप देखेगा। वह स्वयं भेंट का उपाय करेगा।” और परमेश्वर ने मेम्ने का उपाय किया था, जिसे अब्राहम ने परमेश्वर के लिए बलिदान में चढ़ाया था।
निर्विरोध गति से हम तक आने वाले परमेश्वर के सन्देश को देखिए।
परमेश्वर बचाता है, वह अब्राहम के पुत्र को एक मेम्ने को देकर बचा लेता है।
तब निर्गमन के समय, हम एक बार फिर से मेम्ने की महत्वपूर्णता को देखते हैं। निर्गमन में, परमेश्वर उसके लोगों को मिस्र में चेतावनी देता है कि वह मिस्रियों को मारने पर है। यदि वे जो परमेश्वर में विश्वास करके अपने दरवाजों की चौखट पर मेम्ने के लहू को लगा लेते हैं, तो परमेश्वर का मृत्यु का स्वर्गदूत उनके आगे से निकलते हुए, उन्हें मृत्यु से बचा लेगा। विश्वासियों की एक जाति एक मेम्ने के द्वारा बचा ली गई थी।
तब हम एक बार फिर से लैव्यव्यवस्था में मेम्ने को देखते हैं। प्रत्येक वर्ष याजक को एक मेम्ने को शहर के बाहर ले आने के लिए और उन लोगों के पापों के लिए बलिदान करने के लिए कहा गया है जो परमेश्वर में विश्वास करते थे। प्रत्येक वर्ष एक मेम्ने के द्वारा एक जाति के लोगों को बचा लिया जाता था।
तब हम यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को सुनते हैं जो एक भीड़ को यीशु के बारे में यह कहते हुए सम्बोधित कर रहा है:“देखो! यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है!”10 एक मेम्ना, जो पूरे संसार को बचाता है, उन सभों को जो उसमें विश्वास करते हैं उन्हें बचाता है।
उस समय क्या हुआ होता यदि अब्राहम परमेश्वर की आवाज को नहीं सुनता, और यह विश्वास नहीं किया होता कि परमेश्वर उससे ही बात कर रहा था? यह बात सही है, उसका पुत्र मार डाला गया होता!
उस समय क्या होता जब लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं किए होते और उन्होंने अपनी चौखटों के ऊपर मेम्ने के लहू को नहीं लगाया होता?
अब प्रश्न यह उठता है। लगभग 2000 वर्षों पहले, यीशु, परमेश्वर का मेम्ना, क्रूस के ऊपर लटका दिया गया, और उसने अपने जीवन को आपके लिए दे दिया। हमें स्पष्ट कहा गया है, “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।”11
यदि आपने ऐसा कहा हैं, “नहीं, नहीं, उन्होंने उसे क्रूस पर नहीं चढ़ाया था। वह नहीं मरा था।”परमेश्वर का यह मेम्ना हमारे पापों और संसार के सारे पापों की कीमत को अदा करने के लिए बलिदान हो गया। यदि आपने ऐसा कहा है कि वह नहीं मारा गया था, तो यह कि परमेश्वर का यह मेम्ना आपके पापों के लिए, आपकी क्षमा के लिए नहीं मरा था?
यह एक गंभीर प्रश्न है। इसके उत्तर में एक उदाहरण हमारी सहायता करेगा।
मान लेते हैं कि हमारे पास एक फूलदान है। इसमें कोई फूल नहीं है, न ही इसमें पानी है। इसमें केवल हवा भरी हुई है। फूलदान के बाहर और फूलदान के भीतर की हवा के मध्य में क्या अन्तर है? फूलदान के अन्दर की हवा का एक आकार है, ठीक है ना? अपने संयोजन में यह वही है, परन्तु फूलदान के भीतर की हवा का एक आकार है।
यदि आप फूलदान को लेंगे और दीवार से टकरा कर इसे तोड़ देंगे, तो इसके अन्दर की हवा का क्या होगा? क्या यह मर जाएगी? नहीं, हवा मर नहीं सकती है। फूलदान के कई हज़ारों टुकड़े हो सकते हैं, परन्तु हवा के साथ कुछ नहीं होता है, परन्तु वह अपने आकार को खो देता है।
जब यीशु क्रूस के ऊपर मर गया, उसका शरीर मर गया, परन्तु यीशु की आत्मा, परमेश्वर की आत्मा कभी नहीं मरती है। परमेश्वर ने मनुष्य का रूप, यीशु में धारण किया था। उसने मनुष्य के आकार को अपने ऊपर, यीशु में ओढ़ लिया था। उसने मनुष्य के रूप को अपने ऊपर धारण कर लिया था, परन्तु यीशु केवल एक मनुष्य नहीं था।
क्रूस के ऊपर, यीशु ने हमारे पापों की कीमत को अदा कर दिया और उस रूकावट को हटा दिया जो हमारे और उसके मध्य में खड़ी हुई थी। उसकी मृत्यु के कारण, हमारा परमेश्वर के साथ मेल हो सकता है। यद्यपि हम दोषी थे, परमेश्वर का न्याय यीशु के द्वारा पूर्ण हुआ, जो परमेश्वर का मेम्ना है जिसने हमारे लिए दु:ख उठाया। और परमेश्वर का प्रेम उसमें पूर्ण रूप से व्यक्त हुआ जिसमें यीशु ने स्वयं के जीवन को स्वेच्छा से हमारे लिए दे दिया।
हो सकता है कि आप यह कहें कि, “यह तो न्यायोचित नहीं है।” और आप ठीक है। हम इस योग्य नहीं है कि यीशु हमारे लिए अपने प्राणों को दे। परन्तु हमारे लिए यही परमेश्वर का समाधान था। क्या हमें यह परमेश्वर से पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों जरूरी था?
यीशु ने मृत्यु के हमारे जुर्माने को अदा कर दिया है, ताकि हमें हमारे पापों के लिए मरने की आवश्यकता न पड़े। वह हमारे पास आकर हमारे साथ अपने सम्बन्ध को बनाना चाहता है, कि हम उसके प्रेम को जाने, और यह कि हमारे पास अनन्तकाल का जीवन हो।
एक और कहानी यहाँ पर दी जा रही है। यह एक सच्ची कहानी है, जो हमें यह समझने में सहायती करेगी कि यीशु ने हमारे लिए क्या किया है।
एक धर्मी न्यायाधीश था जो कभी भी रिश्वत नहीं लेता था। वह पूर्ण रीति से धर्मी था। ईमानदार था। एक औरत को पकड़ लिया गया और उसके सामने न्याय के लिए लाया गया। जिस जुर्माने को उसे अदा करना वह उम्रकैद थी या फिर इतनी बड़ी रकम थी जिसे वह अदा नहीं कर सकती थी।
न्यायाधीश ने उससे कहा, “क्या तुम दोषी हो या नहीं?”
और वह चिल्ला उठी, “श्री मान् जी, मैं उम्र कैद नहीं काट सकती हूँ। मैं इतनी बड़ी रकम अदा नहीं कर सकती हूँ। मुझ पर दया की जाए।”
न्यायाधीश ने कहा, “मैं पूछ रहा हूँ कि, ‚क्या तुम दोषी हो या नहीं? क्या तुम अंगीकार करती हो?’”
अन्त में जवान स्त्री ने कहा, “श्री मान् जी, हाँ, मैं दोषी हूँ।”
तब उसने कहा, “तब तुम्हे मूल्य चुकाना ही होगा। या तो उम्रकैद या फिर इसके बदले में पैसा।” और उसने मुकद्दमें को बन्द कर दिया।
वह स्त्री चिल्लाने और विलाप करने लगी, और वह उसे अदालत से बाहर कारागृह में डालने के लिए खींच लाए। न्यायाधीश ने अपनी न्यायी वाली पोशाक को उतार दिया, और अदालत से बाहर चला गया। वह तब राजकोष की ओर गया। और राजकोष में जाकर, उसने जो कुछ उसके पास था उससे सारी रकम को अदा कर दिया और उस लड़की के छुटकारे को प्राप्त कर लिया। क्यों? क्योंकि वह इस लड़की को बहुत प्यार करता था। वह उसकी लड़की थी। और उसने स्वयं अपनी लड़की का छुटकारा उस सब से कर लिया जो उसके पास था।
जब न्यायाधीश ने अपनी पोशाक को उतारा, तो वह किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह एक साधारण व्यक्ति बन गया था। और यही कुछ अक्षरश: यीशु ने किया। उसने स्वर्ग को छोड़ दिया, और किसी भी एक व्यक्ति की तरह एक साधारण मनुष्य बन गया। और वह हमारे लिए मर गया, ताकि हमारे पाप हमें अब और अधिक दोषी न ठहरा सकें और हमें अनन्तकाल के लिए परमेश्वर से दूर न रख सकें।
सभी भविष्यद्वक्ताओं ने कहा कि यीशु आएगा और इस संसार के पापों के लिए मारा जाएगा। यीशु ही मनुष्य के लिए अनन्तकाल की जीवन की आशा है।
आदम और हव्वा के साथ आरम्भ में, परमेश्वर ने शैतान से कहा था कि स्त्री की एक सन्तान होगी जो शैतान के सिर को कुचल देगी और मनुष्य का छुटकारा हो जाएगा। यीशु की मृत्यु और उसके पुनरूत्थान ने शैतान की सामर्थ्य के ऊपर विजय को पाया है। यीशु ने पाप, मृत्यु और परमेश्वर से हमारे अलगाव के ऊपर...शैतान को नाश करने वाला प्रहार करते हुए विजय पाई है।
केवल एक ही परमेश्वर है। यह पर वह बातें दी गई हैं जिन्हें हम जानते हैं कि वह परमेश्वर के लिए सत्य हैं:
परमेश्वर अनन्त है – वह सदैव से अस्तित्व में था, अस्तित्व में है, और सदैव अस्तित्व में रहेगा।
परमेश्वर पवित्र है – वह बिना किसी दोष के, पूर्ण सिद्ध है।
परमेश्वर सत्य है – उसके शब्द सदैव अपरिवर्तनीय, विश्वसनीयता के साथ सत्यता में टिके रहेंगे।
परमेश्वर हर कहीं – सभी समयों में विद्यमान है।
परमेश्वर सर्वसामर्थी है – उसकी सामर्थ्य की सीमा नहीं है।
परमेश्वर सर्व-ज्ञानी है – उसे सदैव, सब कुछ का पूर्ण ज्ञान है।
परमेश्वर सृष्टिकर्ता है –ऐसा कुछ भी अस्तित्व में नहीं है जिसकी उसने रचना न की हो।
केवल एक ही परमेश्वर है। और उपरोक्त सभी बातें उसके लिए सत्य हैं । हम इसे जानते हैं क्योंकि पवित्रशास्त्र इसे परमेश्वर के प्रति सत्य होने के लिए प्रकाशित करता है। उसने मनुष्यजाति को स्वयं को प्रगट करने के लिए चुना है, अपने बारे में इन सत्यों को हम पर प्रगट करने के लिए चुना है।
पवित्रशास्त्र यह भी प्रगट करता है कि यीशु में भी परमेश्वर के यह गुण अक्षरश: विद्यमान थे। और यही परमेश्वर के आत्मा के पास भी हैं। उदाहरण के लिए, आइए अनन्तता को देखें।
पवित्रशास्त्र यीशु के लिए ऐसे कहता है, “वह आदि से परमेश्वर के साथ था। उसी के द्वारा परमेश्वर ने सब कुछ की रचना की, और कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई।”12
साथ ही, “वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि का पहिलौठा है। क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई है, स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार -- सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिए सृजी गई हैं।”13
परन्तु यदि एक ही परमेश्वर है, तो फिर कैसे यीशु भी परमेश्वर हो सकता है?
इस पृथ्वी पर, हम तीन-आयामी संसार में रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की ऊँचाई, चौड़ाई और गहराई होती है। दो व्यक्ति एक दूसरे के जैसे दिखाई दे सकते हैं। हो सकता है कि उनमें एक जैसी ही रूचियाँ हों, उनके एक जैसे ही व्यवसाय हो। परन्तु एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के जैसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता है। वे दोनों एक दूसरे से विशेष रूप से भिन्न व्यक्ति हैं।
तथापि, परमेश्वर इस तीन-आयामी ब्रह्माण्ड की सीमाओं से परे रहता है। वह आत्मा है। वह हमारी अपेक्षा अपनी असीमता में अधिक जटिल है। इसलिए ही यीशु जो पुत्र है पिता से भिन्न हो सकता है। और तौभी वह उस जैसा है।
बाइबल इसके लिए स्पष्टता से कहती है:परमेश्वर पुत्र, परमेश्वर पिता, और पवित्र आत्मा परमेश्वर। तथापि यह साथ ही स्पष्टता से हमें बताती है कि केवल एक ही परमेश्वर है। यदि हमें गणित का उपयोग करना होता, तो यह ऐसे होगा कि 1+1+1= 3 परन्तु यह ऐसा होता है 1x1x1=1परमेश्वर एक है।
जब यशायाह ने कहा था, “इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।”14 इम्मानुएल का शाब्दिक अर्थ “परमेश्वर हमारे साथ” से है।
यीशु ने कहा कि उसे जानने का अर्थ परमेश्वर को जानना है। उसे देखने का अर्थ परमेश्वर को देखने से है। उसमें विश्वास करने का अर्थ परमेश्वर में विश्वास करना है।
यीशु के जीवन के बारे में और कैसे उसने इन कथनों को प्रमाणित किया पर और अधिक जानकारी के लिए, कृपया करके “अन्धे विश्वास से परे”नामक लेख को देखें।
तथापि, यहाँ पर कुछ और परमेश्वर के बारे में है जिसे आपको जानना आवश्यक है। वह आपको प्रेम करता है और आपके बारे में ध्यान रखता है।
यीशु हमसे कहता है, “जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा; मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।”15
यीशु हमें निमंत्रण देते हैं, “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।”16
परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हमारे सभी प्रयास केवल मात्र एक संघर्ष हैं...यीशु हमें नई स्वतन्त्रता प्रदान करता है। हम उसके प्रेम का अनुभव करते हैं, और परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हमारे पास नई प्रेरणा होती है। यह डर के कारण नहीं होती है, अपितु उससे जानने के आनन्द से भरकर होता है।
यीशु के एक अनुयायी, पौलुस ने इसका अनुभव किया और ऐसी टिप्पणी दी है:
“क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, न गहराई, और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।”17
यदि आप यह समझना चाहते हैं कि यीशु आपको क्या देने का प्रस्ताव कर रहा है, तो कृपया इस लेख:“अन्धे विश्वास से परे” को देखें।
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