स्टीव सौयर के द्वारा
मेन के तट से दूर , एक नौसेना का जहाज घने कोहरे में जलयात्रा कर रहा था। उस रात जहाज के एक आदमी ( मिडशिपमैंन ) ने दूरी से एक जलती हुई बत्ती देखी और उसने दूर जहाज के कप्तान से संपर्क किया , “ कुछ दूरी पर एक बत्ती दिखाई दे रही है जो हमारी तरफ बढ़ रही है। आप मुझसे क्या करने की उम्मीद करते हैं ? ” कप्तान ने उससे आते हुए जहाज को संकेत देने के लिए कहा ताकि वह अपना मार्ग बदल सके। उस जहाज ने वापस संकेत भेजा , “ नहीं , आप अपना मार्ग बदलिए।” कप्तान ने फिर से अपने मिडशिपमैंन को उस आते हुए जहाज को तुरंत अपना अपना मार्ग बदलने का संकेत भेजने को कहा। फिर से वही जवाब आया , “ नहीं , आप अपना मार्ग बदलिए। ” अंतिम कोशिश करते हुए मिडशिपमैंन ने फिर से जहाज को संकेत भेजा , “ यह युनाइटेड स्टेट की नौसेना के युद्धपोत के कप्तान का संकेत है कि आप अपना मार्ग तुरंत बदलिए। ” उसका जवाब था , “ नहीं , आप अपना मार्ग बदलिए। यह प्रकाशस्तंभ है। ”
यह कहानी यह दर्शाती है कि किस प्रकार हम मानव दुख और दर्द के साथ सौदा करते हैं। हम हमेशा चाहते हैं कि हमारे चारों तरफ की परिस्थितियाँ रास्ता बदलें। उन स्थितियों का सामना करने के लिए हम खुद को नहीं बदलना चाहते हैं। मेरा जीवन इसका जीता जागता उदाहरण है।
मैं अधिरक्तस्त्राव की समस्या के साथ पैदा हुआ , खून की एक गड़बड़ी जिसके कारण मेरे जोड़ों और हड्डियों में अकारण ही सूजन आ जाती थी। अधिरक्तस्त्राव का इलाज एक तरह के प्रोटीन से होता था जो कि बाहर से चढ़ाए गए खून के कोष से मिलता था। एक बार संभवतः 1980 और 1983 के बीच , मुझे खून देनेवाला आदमी एच आई वी से पीड़ित था। परिणामस्वरूप , मेरा जो भी इलाज उस रक्त के कोष से हुआ ( संभवतः सौ बार ) वह एच आई वी से संक्रमित था। उसी तरह बाद में मुझे हेपाटिटीस सी हो गया।
मुझे यह नहीं बताया गया कि मैं एच आई वी पॉसिटिव ( सकारात्मक ) हूँ। जब मैं हाई स्कूल के द्वितीय वर्ष में था तब मुझे कई सालों के बाद इसका पता चला। जब मुझे बताया गया तब मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया आम लोगों जैसी थी जैसी कि ऐसी परिस्थितियों में होती है जिसे हम आराम से सुलझा लेते हैं। मैंने यह मानने से इनकार कर दिया कि मैं एच आई वी पॉसिटिव ( सकारात्मक ) हूँ और यह जताने की कोशिश की कि मुझे वह है ही नहीं। एच आई वी ने मुझे उस तरह परेशान नहीं किया जिस तरह अधिरक्तस्त्राव करता है। अधिरक्तस्त्राव में जब आपकी हड्डियों में और जोड़ों में सूजन आ जाती है तब उनमें भयंकर दर्द होता है। पर एच आई वी में कोई बाहरी लक्षण नहीं रहता है। आपको शायद इसका आभास नहीं है , अतः यह जताना कि वह नहीं है ज्यादा आसान था। इसी तरह मेरे माता – पिता ने भी उसके साथ समझौता कर लिया। उन्होंने कहा , “ तुम अच्छे लग रहे हो , तुम ठीक दिखाई दे रहे हो , अतः तुम ठीक ही होगे।”
इस तरह के इनकार का सबसे अच्छा उदाहरण मॉण्टी पायथन के चलचित्र इन सर्च ऑफ होली ग्रेल में है। उसके एक दृश्य में , राजा आर्थर जंगल से होकर यात्रा कर रहा था तो उसे एक शूरवीर योद्धा मिला जिसने काला कवच पहना था जो कि जीर्ण – शीर्ण था। उस योद्धा ने राजा का रास्ता रोका। राजा आर्थर ने महसूस किया कि उस योद्धा को युद्ध में हराए बिना आगे निकलना बहुत कठिन है। दोनों में युद्ध हुआ और राजा आर्थर उस काले कवचवाले योद्धा के हाथ काट दिए। उसके बाद राजा आर्थर ने अपने धनुष और तलवार को म्यान में रखकर चलना शुरू कर दिया। पर योद्धा ने राजा का रास्ता रोका और कहा , “ नहीं ! ” पर राजा आर्थर ने कहा , “ मैंने तुम्हारा हाथ काट दिया है ! ” योद्धा ने उसे देखा और कहा , “ नहीं तुमने नहीं काटा है ! ” राजा आर्थर जमीन की तरफ देखा और कहा , “ देखो वह तुम्हारा हाथ है जो नीचे पड़ा है ! ” योद्धा ने कहा , “ यह केवल माँस का घाव है।” राजा आर्थर ने यह महसूस किया कि उसे अपने आप को उस योद्धा से छुड़ाने के लिए निर्दयता से उसे पंगु बनाना होगा। अतः युद्ध और देर तक चला और राजा आर्थर ने उस योद्धा के शरीर के सारे अंग काट दिए। उस योद्धा का शरीर अब केवल एक ठूँठ की तरह रह गया जिस पर एक सिर लगा था। जब राजा आर्थर जाने लगा तब आप उस योद्धा का पीछे से चिल्लाना सुन सकते थे , “ कायर वापस आ जाओ। नहीं तो मैं तुम्हारे घुटने काट दूँगा ! ”
यह कहना व्यर्थ होगा कि वह योद्धा नकारात्मक स्थिति में था। वह इस तथ्य को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं था कि वह युद्ध हार गया है। हालांकि नकारात्मक अवस्था का यह बहुत ही हास्यास्पद उदाहरण है पर नकारात्मक स्थिति के खतरे अत्यंत वास्तविक होते हैं। अगर मैं लगातार इस सत्य को अस्वीकार करता रहता कि मैं एच आई वी पॉसिटिव ( सकारात्मक ) हूँ , तो हो सकता था कि मैं अपनी अंगुली के थोड़े से कटने पर या उस तरह की छोटी बातों पर सही एहतियात नहीं बरतता और हो सकता हथा कि मैं बुरी तरह घायल हो जाता या किसी और को मार देता। आप जब इस तरह के खतरों को अस्वीकार करते हैं तो यह आपके लिए अत्यंत खतरनाक और दर्दनाक साबित होता है। जब आप ऐसी बातों को बहुत लम्बे समय तक अस्वीकार करते रहते हैं और ऐसा दिखाते हैं कि वह चीज है ही नहीं तो वह जमा हो जाती है और अंत में फट कर निकल पड़ती है।
मैं एच आई वी पॉसिटिव ( सकारात्मक ) नहीं हूँ मैं इस बात को तीन साल तक ही अस्वीकार कर सका। पर हाई स्कूल के मेरे वरिष्ठ वर्ष में मैं बहुत बीमार हो गया। उस समय मुझमें बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगे। टी कोशिकाएँ सफेद रक्त कोशिकाएँ होती हैं जो कि रोग के संक्रमण से लड़ती हैं। टी कोशिकाओं की संख्या जो कि आपके शरीर में होती है उससे पता चलता है कि आप एच आई वी पॉसिटिव हैं या आपको एड्स है। जब आपकी टी कोशिकाओं की संख्या 200 से कम हो जाती है तो आपको पूरी तरह से एड्स द्वारा संक्रमित माना जाता है। मेरी टी कोशिकाओं की संख्या 213 थी और लगातार कम हो रही थी। मैं बहुत अधिक बीमार और कमजोर हो गया था। मै खाना भी पचा नहीं पा रहा था। अब ज्यादा देर तक यह अस्वीकार करना मुश्किल था कि मेरा एच आई वी पॉसिटिव या एड्स वास्तविक नहीं है।
अस्वीकृति अब देर तक मेरा विकल्प नहीं बन सकती थी। अतः अब मुझे उन सब स्थितियों से , जिनसे मैं गुजर रहा था , सौदा करने का एक नया रास्ता खोजना था। मैंने सबसे पहली चीज जो करने की कोशिश की , वह थी कि मैं अपनी स्थितियों के लिए किसी और को दोषी ठहराऊँ। मैंने सोचा कि मैं तब बेहतर महसूस करूँगा जब कोई मेरे पास आए और कहे , “ स्टीवन , यह मेरी गलती है और मुझे माफ कर दो। ” शुरू में मैंने पूरे समलैंगिक समुदाय को दोषी ठहराने का निश्चय किया। समस्या से निकलने का यह तरीका आसान लगा। पर बाद में मैंने इसके बारे में सोचा और महसूस किया कि अपनी समस्या के लिए किसी एक समुदाय के पूरे लोगों को दोषी ठहराना मूर्खता है। फिर मैंने इसके लिए ईश्वर को दोषी ठहराना उचित समझा। वास्तव में मैं उस समय ईश्वर पर विश्वास नहीं करता था , पर मैंने यह महसूस किया कि वैसी परिस्थितियों में यदि कोई उनपर काबू पा सकता है तो वह केवल ईश्वर ही है। अतः मैंने ईश्वर पर दोष लगा दिया।
यदि आप के पास कोई ऐसी जगह है जहाँ पर आप अपने अंदर का जमा हुआ दर्द केंद्रित कर सकते हैं तो वह दर्द गुस्से में परिवर्तित हो जाता है। धीरे – धीरे वह रोष में बदलने लगता है। अब मैंने पागलों की तरह गुस्सा होकर उन सब परिस्थितियों के साथ , जो मेरे सामने आईं , सौदा करना शुरू कर दिया। किसी भी समय यदि कोई मुझसे कुछ भी कहता तो मैं उससे नाराज हो जाता और उसपर बरस पड़ता। मैं इस तरह की हरकत करता जैसे – दीवारों पर घूँसे मारना , अपने कमरे को तहस – नहस कर देना आदि।
पर मैंने पाया कि गुस्से में वह ताकत है जो आपके दिमाग को पूरी तरह ढक देती है जिसके कारण आप तर्संगतता से काम नहीं कर पाते। उससे भी बदतर , उस प्रक्रिया से आप उन्हें दुख पहुँचाते हैं जो आपसे प्यार करते हैं। दर्द का सामना करने का सबसे अच्छा तरीका रोना है क्योंकि इससे किसी को दुख नहीं पहुँचता। उससे आप अंदर से बहुत ही अच्छा महसूस करते हैं।
एक बार मैं अपने कमरे में था और मैं दर्द की अन्तिम सतह तक पहुँच गया था। मैं बहुत बीमार था और मेरा वजन बहुत अधिक घट गया था। मैं चिल्ला रहा था , परमेश्वर की शपथ खा रहा था , अपने कमरे की दीवारों पर घूँसे मार रहा था और तभी मेरे पिता मेरे कमरे में आए। उन्होंने अंदर आने के बाद दरवाजा बंद कर दिया। मेरे पिता नशे को छोड़ने की कोशिश करनेवाले शराबी थे। एए के द्वारा उन्हें उच्चतम शक्ति के बारे में जानकारी मिली थी। उसके द्वारा ही उन्हें ईश्वर के बारे में पता चला था। मेरे पिता ने मेरी तरफ देखा और कहा , “ स्टीव तुम जानते हो कि मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। तुम्हारे डॉक्टर तुम्हारी मदद नही कर सकते , तुम्हारी माँ तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। तुम खुद अपनी मदद नहीं कर सकते। इस समय जो तुम्हारी मदद कर सकता है वह केवल ईश्वर है।” यह कहकर वे कमरे से बाहर चले गए और उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
अब , जब मैंने ईश्वर की शपथ खानी बंद कर दी थी तो मुझे नहीं लगता था कि मैं उस स्थिति में हूँ कि ईश्वर से मदद माँग सकूँ। पर , मैं ऐसी स्थिति में था जिसमें ईश्वर से मदद माँगने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था। मैं अपने घुटनों पर बैठ गया। मेरी आँखों से आँसू बहने लगे और मैंने कहा , “ ठीक है ईश्वर , अगर तुम हो , तो तुम मेरी मदद करो और मैं तुम्हारी मदद करूँगा। ” इसके बाद बहुत ही कम समय में मेरा वजन बढ़ने लगा और पहले जैसा हो गया। मेरी टी कोशिकाओं की संख्या बढ़कर 365 हो गई जो कि काफी अच्छी थी। मैंने अपने आप को बहुत बेहतर महसूस किया। जब मैं अपने आप को बहुत बेहतर महसूस कर रहा था तब मैंने सोचा और कहा ,” ठीक है , प्रभु धन्यवाद । टा टा । यह बहुत अच्छा था। अलविदा। ”
स्नातक की उपाधि लेने के बाद जब मैं नौकरी की परीक्षा के लिए मेरा नया साल शुरू होने के पहले गर्मी में कॉलेज गया। यह तब हुआ जब मैं मेरे कमरे में मेरे साथ रहनेवाले सहपाठी से मिला। वहाँ जाकर मैंने अपनी परीक्षा खत्म की और वहाँ वह लम्बा , पतला और सुनहरे बालोंवाला लड़का खड़ा था। उसने कहा , “अरे , तुम तो बिल्कुल साधारण दिख रहे हो। क्या तुम मेरे साथ कमरे में रहोगे ? ” और मैंने सोचा , ठीक है , तुम शायद नहीं , पर --- “ जरूर ” हम एक साथ कमरे में रहने लगे। वास्तव में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। मुझे पता चला कि मेरा दोस्त ईसाई था। उस समय मेरे दिमाग में ईसाइयों की एक तस्वीर बनी हुई थी। मेरे लिए ईसाई एक पाखंडी , कृपालु और निन्दनीय व्यक्ति था। मैं सोचता था कि ईसाई वैसे ही मनुष्य हैं। पर मेरे कमरे में मेरे साथ रहनेवाला ईसाई अलग था।
उसे डिसलेक्सिया की समस्या थी। मैंने गौर किया कि जब वह पढ़ाई करता था और निराशा के चरम बिन्दु पर पहुँच जाता था – उस बिन्दु पर जहाँ मैं दीवारों पर घूँसे मारता था और चीजों को तोड़ – फोड़ कर बरबाद करता था – वह एकदम रुक जाता था , अपनी आँखों को बंद कर लेता था , एक प्रार्थना करता था , गहरी साँस लेता था और फिर वापस अपने काम पर लग जाता था। यह देखकर मेरी आँखों की नींद उड़ गई। मैंने सोचा , “ आप कुछ भी कैसे नहीं तोड़ सकते हैं ? आपको कुछ तो तोड़ना ही होगा !” मुझे वास्तव में यह देखकर अचरज हुआ कि वह वैसा कुछ कर पाता था।
मेरे साथ रहनेवाले मेरे मित्र ने बसंत की छुट्टियों में ( स्प्रिंग ब्रेक ) मुझे अपने साथ डेटोना के तट पर ( बीच) चलने के लिए आमंत्रित किया। जब हम वहाँ थे , मेरा मित्र एक व्यक्ति से, जो कि हमारी बगल में बैठा था , बातें करने लगा। शुरू में हम आम विषय़ों पर बातें कर रहे थे। वैसी बातें जो कि बिल्कुल आम होती हैं। फिर मेरे मित्र ने गंभीर विषयों पर गहराई से चर्चा करने का निश्चय किया। मैं उनमें नहीं पड़ना चाहता था। मैं उनसे काफी संघर्ष कर रहा था। यह जानकर इसे स्वीकारना कि आप बहुत ही छोटी आयु में मरनेवाले हैं , बहुत ही कठिन था। वास्तव में समुद्र के तट पर बैठे एक अजनबी से मैं उस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहता था। अतः मैं धीरे से उस चर्चा से बाहर होने की कोशिश करने लगा। वे आपस में बात करते रहे , और बात करते – करते अंततः वे इस बिन्दु पर पहुँचे कि मेरा मित्र एक ईसाई होने के नाते क्या सोचता है। मैं हमेशा सोचता था कि ईसाई कैसे होते हैं पर वास्तव में मैंने कभी यह सोचने की कोशिश नहीं की कि वे क्या सोचते हैं या किसपर विश्वास करते हैं। अतः वे जो कह रहे थे मैं उसे सुनने लगा।
मैं नहीं जानता कि मैं उतनी अच्छी तरह से आपको समझा पाऊँगा या नहीं जिस तरह उसने समझाया था। उसने कुछ इस तरह कहा था , “ जाहिर है कि मैं ईश्वर पर विश्वास करता हूँ। मैं ऐसा मानता हूँ कि ईश्वर ने हमारी रचना इसलिए की है ताकि हम उसके साथ एक रिश्ता बना सकें। पर हम उसके साथ उस रिश्ते में रहना नहीं चाहते हैं और इसलिए हम उसे अपने से दूर कर देते हैं। ईश्वर को उस तरह अपने से दूर झटकना , वह विद्रोह - चाहे वह उसके प्रति सक्रिय रूप में हो या निष्क्रिय उदासीनता के रूप में – बाइबल में वह “ पाप ” कहलाता है। मुझे “ पाप ” शब्द पसंद नहीं है। अतः मैं उसके बारे में ऐसे सोचता हूँ जैसे ईश्वर को दूर ढकेल देना। चूँकि हमने यह किया है और हमारी रचना ईश्वर के साथ रिश्ता रखने के लिए हुई है , अतः हमें उसके लिए सजा भुगतनी होगी। हमारे विद्रोह की सजा मौत है और हम इसीलिए मरते हैं। हमारी एक आध्यात्मिक मौत होती है और हम ईश्वर से जुदा हो जाते हैं। ” मैंने सोचा , ओह , यह खुशी की बात है।
अतः मैंने कहा , “ पर ईश्वर हमें प्यार करते हैं। ” और उसने कहा , “ पर ईश्वर न्यायी भी है। न्याय के बिना प्रेम का कोई महत्व नहीं है। ” मैं उस कथन का कोई अर्थ नहीं निकाल सका । मुझे वह अर्थहीन लगा। अतः उसने कहा , “ अच्छा उस व्यक्ति की तस्वीर अपनी आँखों के सामने लाइए जिसकी आप इस संसार में सबसे ज्यादा परवाह करते हैं , उस व्यक्ति के लिए आप तुरंत अपनी जान देने में भी नहीं झिझकेंगे। अब आप अपनी एक तस्वीर अपनी आँखों के सामने लाइए जिसमें आप उस आदमी को अपने से दूर ढकेल रहे हैं और बहुत समय तक आप उसे नहीं देखेंगे। फिर एक दिन अचानक वह आदमी आपको अपने से पचास गज की दूरी पर खड़ा दिखाई देता है। आप दौड़कर उसके पास जाते हैं और उसकी तरफ अपनी बाहें फैलाते हैं। पर वह आपको रोक देता है और कहता है , “ नहीं , याद है तुमने मुझे अपने से दूर ढकेल दिया था ? ” अब ईश्वर को अपने से दूर ढकेलने की तस्वीर अपने सामने लाइए , जो ब्रह्मांड मे सबसे अधिक प्रेम करनेवाला है। ”
और मैंने सोचा , “ वाह यह सही नहीं है। ” उसने कहा , “ अच्छा , तकदीर से यह बात यहाँ खत्म नहीं होती है क्योंकि ईश्वर हमसे बहुत ज्यादा प्यार करता है और हमारी बहुत ज्यादा परवाह करता है। उसने हमारे लिए जुर्माना भरने का निश्चय किया। उसने अपने पुत्र ईसामसीह को हमारी जगह सूली पर चढ़कर मरने के लिए भेजा। ईसामसीह , जो कि हाड़ माँस से बना ईश्वर ही था उसने पापरहित जीवन जिया। वह किसी और के लिए सजा भुगत सका। उसने हमारे लिए वह भुगतान किया। ”
और उसने कहा , “ मरने के तीन दिन बाद ईसामसीह पुनःजीवित हुआ। उसने उस आध्यात्मिक मृत्यु पर विजय पा ली थी और उसके बदले में हमें अनन्त जीवन का प्रस्ताव दिया। अब हम केवल मरेंगे नहीं बल्कि ब्रह्मांड मे सबसे अधिक प्रेम करनेवाले के साथ अनन्त जीवन बिताएँगे। ”
और मैंने कहा , “ वाह ” पर उसने कहा , “ उसमें एक चाल है , हालांकि उसने हमें यह प्रस्ताव दिया और हमारे लिए जुर्माना भरा , पर यदि आप उसका यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं करते हैं तो - - - यह आपके ऊपर है। ” यह बात स्पष्ट रूप से मेरी समझ में नहीं आई औऱ तकदीर से न ही दूसरे व्यक्ति को, जो हमारे साथ था। अतः मेरे दोस्त ने कहा , “ अच्छा , आप कल्पना कीजिए कि आप यहाँ सड़क पर गाड़ी चला रहे हैं। आप 90 किलोमीटर की गति से गाड़ी चला रहे हैं जबकि आपकी रफ्तार की सीमा 35 किलोमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। आप सड़क पर दौड़े चले जा रहे हैं और एक पुलिसवाला आकर आप पर जुर्माना कर देता है और जुर्माना भरने के लिए एक टिकट देता है। उस टिकट का भुगतान आपको दूसरे दिन न्यायालय में जाकर करना होता है। दूसरे दिन जब आप न्यायालय के कक्ष में पहुँचते हैं तो आप अपने पिता को न्यायाधीश की कुर्सी पर देखते हैं। आप सोचते हैं कि अरे ! यह तो मेरे पिता हैं। आपके पिता आपको देखते हैं और कहते हैं , ‘ स्टीव क्या तुमने कानून तोड़ा है ? ’ और आप कहते हैं , ‘ जी हाँ ’ अतः वे कहते हैं , ‘ ठीक है , 500 पाउंड का जुर्माना या दो दिन की जेल। ’ वे मेज पर अपना हथौड़ा ठोकते हैं और फैसला हो जाता है। ”
“ अब , क्योंकि वह न्यायप्रिय और सही हैं , उन्होंने यह फैसला दिया। पर उसके बाद वह न्यायाधीश की कुर्सी से नीचे उतर कर आते हैं , अपना चोंगा उतारते हैं , अपने पैंट की पीछे की जेब में हाथ डालते हैं और आपको 500 पाउंड पकड़ाते हैं। वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे आपसे प्यार करते हैं और आपके लिए खुद जुर्माना भरते को तैयार हैं। पर आपको उनका भुगतान स्वीकार करना होगा। वह 500 पाउंड लेकर वहाँ खड़े हैं और कह रहे हैं , यह लो और जाओ। उसी तरह , आप ईश्वर से कह सकते हैं , ‘ नहीं , मैं अनन्तकाल आपसे जुदा होकर व्यतीत करूँगा। ’ यह चुनाव आपको करना है। ”
मेरे मित्र ने बताया कि भुगतान को स्वीकार करने का रास्ता प्रार्थना के द्वारा संभव है। उसने कहा ,“ आप ईश्वर के भुगतान को सरलता से स्वीकार करिए। यह ईश्वर की कृपा के कारण है। इसे पाने के लिए आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। यह आपके लिए ईश्वर का उपहार है। ” जीवन में पहली बार मैंने कृपा के बारे में सुना। उसने कहा , “ यह एक ऐसा उपहार है जिसे आप श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रार्थना के द्वारा ग्रहण करते हैं। ” मेरे मित्र ने इस व्यक्ति के साथ प्रार्थना का प्रस्ताव रखा। जब वह जोर से प्रार्थना कर रहा था तब मैंने भी उसके साथ प्रार्थना की , किन्तु चुपचाप।
उसी क्षण से , मैं जीवन को पूरी तरह से एक नए दृष्टिकोण से देखने लगा। अब जब मैं हर रात बिस्तर पर सोने जाता था तो मुझे यह चिन्ता नहीं रहती थी कि मैं अगले दिन जीवित रहूँगा या नहीं। अब मुझे मरने का डर नहीं था क्योंकि मृत्यु केवल एक अंधकार या कालिमा में समाप्त नहीं होनेवाली थी। मैंने जाना कि अब जब मैं मरूँगा तो मैं हमेशा के लिए ब्रह्मांड मे सबसे अधिक प्रेम करनेवाले के साथ अनन्त जीवन बिताउँगा। यह कितना मुक्त महसूस करानेवाला था।
मेरे माता – पिता ने भी ईश्वर के भुगतान को स्वीकार किया। उन्होंने भी उसी तरह ईश्वर से प्रार्थना की जिस तरह मैंने की थी। उनके जीवन में भी एक नए परिप्रेक्ष्य का आगमन हुआ। यह सोचकर अचरज होता था कि यह जानते हुए भी कि शायद मैं छः महीनों से ज्यादा जीवित न रहूँ , वे मुझे अपने से अलग यात्रा करने देते थे। आप कल्पना कीजिए उनके लिए यह कितना कठिन था कि वे हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें और अपने पुत्र को अपने सामने मरते हुए देखें। वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे। पर अब उससे समझौता करने का उनके पास केवल एक ही कारण था। उसे संभालने का मेरे पास भी केवल एक ही कारण था और वह कारण था ईसामसीह का हम सब के जीवन में होना।
क्या मैं आपको एक मौका दे सकता हूँ जिससे आप ईश्वर द्वारा आपके लिए किए गए भुगतान को स्वीकार कर सकें ? अगर आप के पास एड्स का कोई उपचार है तो मैं निश्चिन्त हूँ कि आप मुझे अवश्य बताएँगे। मैं जानता हूँ कि अनंनतकाल तक कैसे पहुँचना है और वह ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है। अतः मैं उसे आपको प्रदान करने की चेष्टा करता हूँ। क्या आप किसी ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जिसे आप अपने आप नहीं संभाल सकते और आप चाहते हैं कि कोई हो जो आपकी मदद के लिए हमेशा आपके साथ हो। जब सारी दुनिया आपको दुत्कार रही हो या लोग पीछे से आपकी पीठ पर प्रहार कर रहे हों तो मैं चाहता हूँ कि आप कृपया मेरे साथ इसी समय एक प्रार्थना करिए। ये कुछ जादू के शब्द या मंत्र नहीं हैं । यह कोई बड़ी संवेगात्मक यात्रा या विचार भी नहीं है। बल्कि , यह ईश्वर के साथ एक रिश्ते की शुरुआत है। दूसरे रिश्तों की तरह इसे निभाने में भी समय लगता है। इसमें भी प्रयास की जरूरत होती है। मैं आपसे आग्रह करता हूँ : अगर वास्तव में आप ऐसा महसूस करते हैं कि आपको इसकी जरूरत है तो इस अवसर को हाथ से न जाने दें। यह मुफ्त है।
अतः मैं अब एक प्रार्थना कर रहा हूँ। आँखें बंद करने से , सिर को झुकाने से , हाथों को जोड़ने से या चिल्ला – चिल्लाकर ईश्वर की स्तुति करने से प्रार्थना का कोई सरोकार नहीं है। ऐसा कुछ नहीं है कि आपको ऐसा करना है। यह आपके मन की मनोवृत्ति है। यह प्रार्थना ईश्वर से कहती है , “ ईश्वर मैंने कानून को तोड़ा है। मैंने आपको बाहर निकाल दिया है। आपके द्वारा किए गए भुगतान को स्वीकार करके मैं वापस आना चाहता हूँ। ” अगर आप इसकी जरूरत महसूस करते हैं तो कृपया इस प्रार्थना को इसी क्षण से शुरू कीजिए। “ प्रभु यीशु , मुझे आपकी जरूरत है। मेरे लिए सूली पर मरने के लिए धन्यवाद। मैं चाहता हूँ कि आप मेरे जीवन में आएँ और मुझे वैसा मनुष्य बनाइए जैसा मैं बनना चाहता था। आमीन। ”
अब , यदि आपने यह प्रार्थना सच्चाई से की है तो आप एक महान रिश्ते की शुरुआत करने जा रहे हैं – ईश्वर के साथ रिश्ता। यह प्रार्थना के साथ समाप्त नहीं होता है। ईश्वर के साथ रिश्ता एक प्रक्रिया है। इसका अर्थ है रोज ईश्वर पर विश्वास करना। जरूरी नहीं है कि आप वह करें जो आप करना चाहते हैं या जो आपको अच्छा लगता है पर वह कीजिए जो आप सोचते हैं कि ईश्वर आप से करवाना चाहता है। कई लोगों ने मुझसे कहा है , “ ईसाई धर्म आपके लिए काम करता है और यह महान है। क्या दूसरे धर्म और लोगों के लिए काम नहीं करते ? ” यह एक अच्छा प्रश्न है। मैं विश्वास करता हूँ कि ईश्वर ने हमें उनके पास आने का एक रास्ता दिया है – सूली पर ईसामसीह की मृत्यु के द्वारा – हालांकि दूसरे धर्मों में भी सत्य का तत्व है। ज्यादातर वे आदर्श के सूत्र हैं – “ इसे दिन में सात बार करिए और यह आपको ईश्वर के समीप ले आएगा। ” पर यदि आप ईश्वर को पाने के लिए कुछ काम कर रहे हैं तो काम की सीमा कहाँ खत्म होती है यह आपको कैसे पता चलेगा ? आपको कैसे पता चलेगा कि आप उस चरम बिन्दु पर पहुँच गए हैं ?
मैं सोचता हूँ कि तब ईसाई धर्म से उसका सत्य मिलता है – ईश्वर की अनुकम्पा के द्वारा। यह जानते हुए कि हम ईश्वर की पूर्णता तक कभी नहीं पहुँच पाएँगे , हम ईश्वर की क्षमा पर आश्रित रह सकते हैं। हमारा लक्ष्य उसके दिखाए गए रास्ते पर चलना है , भले ही हम बहुत सी गड़बड़ी करें। हम गलतियाँ करते हैं , पर आगे बढ़ते रहते हैं। ईश्वर पर विश्वास करते हुए हम उन भूलों को सुधारते रहते हैं। आप प्रार्थना कीजिए। आप बाइबल पढ़िए। आप यह जानने की कोशिश कीजिए कि ईश्वर आपसे क्या चाहता है। किसी दिन आपको शांति मिलेगी। हो सकता है तब तक नहीं , जब तक आप स्वर्ग नहीं पहुँच जाते पर तब यह शांति हमेशा के लिए होगी।
अगर आप एच आई वी के लक्षणों , अधिरक्तस्त्राव , हेपेटाइटीस सी जैसी बीमारियाँ जो स्टीव को हुई थी - के साथ काम कर रहे हैं – या हो सकता है आप जीवन में दूसरी समस्याओं के साथ जूझ रहे हैं। हो सकता है जो स्टीव आपके साथ बाँटना चाहते हैं उसकी आप दूसरी व्याख्या देखना चाहते हैं तो देखिए परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानना।
► | मैंने यीशु को अपने जीवन में आने के लिए कहा (कुछ उपयोगी जानकारी इस प्रकार है) … |
► | हो सकता है कि मैं अपने जीवन में यीशु को बुलाना चाहूँ, कृपया मुझे इसके बारे में और समझाएँ… |
► | मेरा एक सवाल है … |
हेपेटाइटीस सी की वजह से स्टीव सौयर के लीवर ने काम करना बंद कर दिया और 13 मार्च 1999 को स्टीव सौयर की मृत्यु हो गई। ईश्वर करे , उसकी सच्ची कहानी आपको उसी तरह ईसामसीह को अपने जीवन में आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करे जिस तरह स्टीव ने की थी। अपने जीवन के अंतिम दिनों में स्टीव ने कहा , “ वह केवल एक और कैंपस में बात करना चाहता था। ” क्यों ? “ मेरी यह सब बीमारियाँ , जो मेरे जीवन का अंत कर रही थीं उसे देखकर यदि एक व्यक्ति भी सत्य को समझ जाए और ईसामसीह के साथ रिश्ता बना ले तो यह फायदेमंद है। अनन्त के प्रकाश के लिए केवल इसका ही मूल्य है। ”
ईसामसीह को अपने जीवन में आमंत्रित करके आप अनन्त जीवन पा सकते हैं। केवल अच्छे काम करके हम स्वर्ग में नहीं पहुँच सकते हैं। अनन्त जीवन उनके लिए मुफ्त का उपहार है जो ईसामसीह को मानते हैं। बाइबल से - - -
“ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। ” ( यूहन्ना 3 : 16 )
“ हम तो सब के सब भेड़ों की नाईं भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया॥ ” ( यशायाह 53 : 6 )
ईसामसीह ने कहा , “ मैं तुम से सच सच कहता हूं, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजने वाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है। ” ( यूहन्ना 5 : 24 )
“ हे मृत्यु तेरी जय कहां रही ? हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा ? ” ( 1 कुरिन्थियों 15 : 55 )
“ परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है: और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है; और जिस के पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है॥ मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिये लिखा है; कि तुम जानो, कि अनन्त जीवन तुम्हारा है। ” ( 1यूहन्ना 5 : 11 - 13 )
तस्वीरें : Guy Gerrard और Tom Mills © Worldwide Challenge